Tuesday, 29 July 2025

Per Lagayen ham

 




पेड़ लगाएँ 

मामूली खताओं को चलो माफ़ करें हम

और पेड़ लगा कर के फेज़ा साफ़ करें हम

आलुदगी इतनी है की दम घुटने लगा है

माहौल से भी चाहिए इंसाफ़ करें हम

मोहिबुल्लाह 

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मामूली... छोटी - मोटी 

खता... गलती

फिज़ा... पर्यावरण 

आलोदगी... प्रदूषण 

महौल... जहां हम रहते हैं. आस-पास



Kahani Hamdard By Mohibullah

 कहानी:  हमर्दद

✍️लेखक: मोहिबुल्लाह 


’’दिलावर इस प्लाट पर काम जारी रखना। याद रहे किसी मज़दूर की मज़दूरी  में कमी नहीं होनी चाहिए साथ ही अगर किसी की कोई मजबूरी हो तो ज़रूर ख़बर करना। मुझे ये बिलकुल पसंद नहीं कि गरीबी की दलदल से निकलने वाला शख़्स ग़रीबों के ख़ून पसीने से अपना महल तो खड़ा करले मगर बदले में इन मज़दूरों को बेबसी नाउम्मीदी के सिवा कुछ ना मिले। ''मैं पंद्रह दिन के लिए गांव जा रहा हूँ। माँ की तबीयत कुछ ठीक नहीं है । ये कहते हुए सूटकेस उठाकर नासिर अपने दफ़्तर से निकल ही रहाथा कि मंगलू चाचा ने कहा।


’’साहिब जी एक15 साल का जवान लड़का रेस्पशन पर खड़ा है। आपसे मिलना चाहता है। ''नासिर ने पूछा: 

''इस से पूछा नहीं , किया बात है ?'

मंगलू चाचा ने जवाब दिया ’’वो पढ़ाई छोड़कर काम की तलाश में भटक रहा है। मगर बात करने से लगता है कि वो तेज़ और होनहार है।'


नासिर ने अफ़सोस का करते हुए कहा

’’उसे पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए थी! ख़ैर उसे बुलाओ। ये कह कर नासिर वापिस अपने केबिन में चला आया और अपनी कुर्सी पर बैठ गया।'

मंगलू चाचा लड़के को लेकर हाज़िर हुआ।


लड़के ने सलाम दुआ के बाद नासिर के सामने अपनी बात रखी।

’’में एक ग़रीब हूँ, मेरे कई भाई बहन हैं और पिता जी लाचार हैं। इसलिए मैं नौकरी करना चाहता हूँ ।'


नासिर ने पूछा:

’’ लेकिन मुझे मालूम हुआ है कि तुम पढ़ाई कर रहे थे और पढने में तेज भी हो। फिर पढ़ाई क्यों नहीं करते ? '


लड़के ने बड़ी मासूमियत के साथ जवाब दिया:

’’अब आप ही बताईए अब ऐसी हालत में मेरा पढ़ना ज़रूरी है या घर वालों के जीने के लिए बुनियादी ज़रूरतें पूरी करना?

में एक जवान हूँ। काम करसकता हूँ तो फिर अपने घर वालों के लिए नौकरी क्यों ना करूँ। 

दो पैसे मिलेंगे तो उनको कुछ ख़लाओंगा। 

नहीं तो र्न उनके भीक मांगने की नौबत आएगी, 

साहब जी मैं ख़ुद भीक मांग सकता हूँ मगर में अपने माता पिता को भीक मांगते नहीं देख सकता।'


इस की बातों ने नासिर को झिझोड़ कर रख दिया और वो अपनी पुरानी की यादों में खो गया।


नासिर पढ़ने में बहुत तेज़, संस्कारी और हंसमुख लड़का था। इस के पिता जी उसे पढ़ाना चाहते थे इसलिए उसे पटना के अच्छे बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया था,जहां वो अब दसवीं क्लास तक पहुंच चुका था। मगर एक दिन उस के घर से एक पत्र आया जो उस के लिए सर पर आसमान से बिजली गिरने के बराबर था। ख़ैर ख़ैरीयत के बाद पत्र में लिखा था।


’’तुम्हारा बाप अब बीमारी के कारन बहुत माज़ूर हो गया है , थोड़ा बहुत वो कमा कर भेजता है जो घर के इतने खर्च के सामने ऊंट के मुँह में ज़ीरा के मानिंद है। अब हम लोग तुम्हारे पढाई-लिखाई  के अख़राजात क्या पूरे करें यहां घर पर हम लोगों के लिए दो वक़्त की रोटी भी मिलना मुश्किल हो रहा है। दिन ब दिन क़र्ज़ पे क़र्ज़ का बोझ और इस का ब्याज अलग हम लोग बहुत मुश्किल में हैं। तुम्हारी प्यारी दादी'


नासिर का दिल पूरी तरह टूट चुका था वो और पढ़ना चाहता था मगर जब भी वो लालटैन के सामने अपनी किताब खोलता उसे ख़त के वो सारे जुमले कांटे की तरह उस के जिस्म में चुभते हुए  महसू करता । वो जलते हुए लालटैन को अपना दिल तसव्वुर करने लगा जिसमें उस का ख़ून मिट्टी तेल के मानिंद जल रहा था।


धीरे धीरे पढ़ाई से इस का दिल हटने लगा और वो दौर स्कालरशिप का नहीं था या उसे दुसरे  किसी की जानिब से आर्थिक सहायता का सहारा मयस्सर नहीं था , फिर वो ये भी नहीं चाहता था कि अब इन किताबों के पन्नों पर लिखे इन अक्षरों को पढ़े और इस के घर वाले परेशान हो कर अपनी ज़िंदगी तबाह करें।


फिर वो कमाई के तरीक़ों के बारे में सोचने लगा, कभी सोचता किसी दूकान में नौकरी करलूं मगर वहां तनख़्वाह महीने पर मिलेगी, कभी सोचता कि गाड़ी का कंडक्टर बन जाऊं रोजाना आमदनी होगी। मालिक से बोल कर रोज़ाना पैसे ले लिया करूँगा। फिर सोचता कि नहीं इस में भी चाहे मेहनत कितनी भी कर लूं फिक्स आमदनी होगी और दुसरे के अधीन रहना होगा सो अलग। इसलिए सोचा क्यों ना ड्राईवर बन जाऊं और किराए से आटो लेकर गाड़ी चलाऊं, किराया देकर जो बचा सो अपना और ख़ूब मेहनत करूंगा और अपने माता-पिता और घर वालों का फ़ौरी सहारा बन जाऊँगा। इस तरह उसने पटना में ही स्कूल छोड़कर ड्राइविंग करना सीख लिया इस तरह वो एक अच्छा ड्राईवर बन गया और कमाने लगा। 


कुछ दिन बाद जब घर आया और घर वालों को मालूम हुआ तो उस के पिता जी को बड़ी तकलीफ़ हुई उसने कहा:


’’बेटे मैं मानता हूँ कि मैं बहुत ग़रीब हो गया हूँ और अब मुझ से इतना काम नहीं हो पाता मगर ! में अभी मरा नहीं हूँ। फ़िर ये ये क्या ... तुमने पढ़ाई ही छोड़ दी। सब्र करते ये कठिन दिन थे गुज़र जाते'


नासिर ने कहा: 

हाँ पिता जी खुदा आप को सलामत रखे। मैं जानता हूँ कि इस से आपको तकलीफ़ पहुंची होगी। मगर में क्या करता, में आप लोगों की परेशानी देख नहीं सकता। 

इशवर ने चाहा तो धीरे धीरे सारे क़र्ज़ अदा हो जाऐंगे और आपको भी काम करने की ज़रूरत ना होगी।


नासिर गाड़ी चलाता रहा और एक ज़िम्मेदार की हैसियत से अपने घर परिवार की ज़रूरीयात पूरी करने में मसरूफ़ हो गया। अब वो धीरे धरे गाड़ी चलाना छोड़ कर मकान बनाने का कंट्रेट लेना शुरू कर दिया इस तरह वो बहुत बड़ा कांट्रेक्टर और बिल्डर हो गया। ''हौसला बिल्डर ग्रुपस' के नाम से उसने अपनी कंपनी खोली और ना सिर्फ अपने लिए बल्कि वो लोगों का भी हमदर्द  बन कर सामने आया।


आज वो एक बहुत बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक बन चुका था। इस दौरान उस के पिता जी का देहांत हो गया और वह अपनी माँ बहन और भाईयों की देख-रेख  और उनकी पूरी ज़िम्मेदारीयों को बहुत अच्छी तरह अंजाम देने लगा।


सर ....सर ! ..सर आप कहाँ खो गए? इस ग़रीब लड़के ने टेबल पर हाथ रखते हुए कहा:

हाँ..हाँ तो तुम कह रहे थे कि अपनी गरीबी की वजह से पढ़ना नहीं चाहते। ख़ैर परेशान ना हो । हमारे यहाँ तो कोई नौकरी नहीं है अलबत्ता तुम्हारी पढाई के सारे खर्चे और घरवालों के लिए भी उनके जरुरी अख़राजात अब मैं बर्दाश्त करूँगा।


ये सुनकर उस की आँखें डबडबाने लगीं । उसने ताज्जुब भरे अंदाज़ में कहा:

हाँ सर...! क्या ऐसा हो सकता है? आप मेरे और घर वालों के अख़राजात बर्दाश्त करेंगे।

नासिर ने कहा हाँ मगर उस के बदले मुझे कुछ चाहिए।


लड़का चौंका और में पूछा:

क्या-क्या सर? किया चाहिए? मैं तो कुछ दे नहीं सकता !


फिर नासिर ने कहा तुम्हें इस के बदले अपनी मेहनत से अपनी शिक्षा  पूरी करनी होगी और अपनी पूरी लगन के साथ एक अच्छा ऑफीसर बन कर दिखाना होगा। बोलो राज़ी हो?


उसने कहा बिलकुल सर आप इन्फ़सान नहीं फ़रिश्रता हैं, हमारे लिए मसीहा के मानिंद हैं। मैं आपकी उम्केमीद के  मुताबिक़ अपनी शिक्षा पूरी करूँगा।


नासिर ने अपने मैनेजर को बुला कर इस बच्सेचे से  पूरी जानकारी लेकर उस के घर हर माह रक़म भेजने और इस के किसी अच्छे स्कूल में दाख़िला की कार्रवाई पूरी करने का आदेश दिया।


तभी मंगलू चाचा ने आवाज़ दी:

हुज़ूर गाड़ी आ गई और नासिर का सामान उठा कर गाड़ी में डालने के लिए चल पड़ा। नासिर ने इस लड़के से कहा ठीक है। अल्लाह हाफ़िज़ मैं पंद्रह दिन के लिए घर जा रहा हूँ आने के बाद तुमसे तुम्हारे स्कूल में मिलूँगा।

Thursday, 24 July 2025

Kahani Fareeb (Hindi)

 कहानी ..... फ़रेब

मोहिबुल्लाह 


क्यों जी आपकी तबीयत तो ठीक है? क्या सोच रहे हैं। मैं पोते के पास जार ही ज़रा देखूं क्यों रो रहा है। ठीक है सद्दो (सादिया) जाओ मगर जल्दी आना!


फिर उस ने टेबल पर रखे माचिस से सिगरेट जलाया और कश लेते हुए यादों के समुंद्र में डूब हो गया

25 साल गुज़र गए जब सद्दो दुल्हन बन कर घर आई थी। आज भी में इस वाक़िया को नहीं भूल पाया। ससुराल वाले हमेशा मेरे गुस्से का शिकार रहते थे और मैं मन-मौजी, जो जी में आया करता गया।

लेकिन वो हसीन ख़ूबसूरत परी जिसका चेहरा हर-दम मेरी निगाहों के सामने घूमता रहता था। गुज़रते समय के साथ कहीं खो गया !


मैं बहुत ख़ुश था, ख़ुशी की बात ही थी। मेरी शादी जो हो रही थी। लड़की गावं से कुछ फ़ासले पर दूसरे गावं  की थी जिसे में अपने पिता जी और कुछ दोस्तों के साथ जा कर देखा भी था। लंबा क़द, सुराही दार गर्दन, आँखें बड़ी बड़ी, चेहरा किताबी, रंग बिलकुल साफ़ कुल मिलाकर वो बहुत ख़ूबसूरत थी। ख़ानदान और घर घराना भी अच्छा था।


घर में सब लोग ख़ुश थे पिता जी ने कुछ लोगों से बतौर मेहमान जिनमें कुछ मेरे दोस्त भी थे, शादी की इस तक़रीब में शिरकत के लिए दावत दी थी। पिता जी मेहमानों के स्वागत में खड़े थे और घरवालों से जल्दी तैयार होने के लिए कह रहे थे।


मेरे सामने हर वक़त उसी का चेहरा घूमता रहता था, फ़ोन का ज़माना तो था नहीं कि फ़ोन करता जैसा कि इस दौर में हो रहा है

बारात लड़की वालों के दरवाज़े पर पहुंच गई। हल्का नाश्ता के बाद निकाह की कार्रवाई शुरू हुई। क़ाज़ी साहिब के सामने मैं ख़ामोश बुत की तरह बैठा रहा वो क्या कह रहे हैं? क्या-क्या पढ़ा गया। मुझे कुछ पता ही नहीं चला अचानक जब क़ाज़ी साहिब ने पूछा कि आपने क़बूल किया।


ख़यालों का सिलसिला टूट गया और मैं एकाएक बोल गया ' हाँ हाँ मैंने क़बूल किया।'

लोगों को थोड़ी हैरानी हुई कि सब शर्म से धीमी आवाज़ में बोलते हैं ये तो अजीब लड़का है। मगर कोई क्या कह सकता था बात सही थी, बोलना तो था ही ज़रा ज़ोर से बोल गया।


निकाह के बाद मुझे ज़नान ख़ाना में बुलाया गया, मैंने सोचा मुम्किन है कहीं घर में मुझे उसे देखने का मौक़ा मिले कि दुल्हन के जोड़े में वो कैसी दुखती है मगर वही पुरानी बात मुझे वहां देखने का कोई मौक़ा नहीं दिया गया। क्यों कि ऐसी कोई रस्म भी नहीं थी। ख़ैर दिल को मना लिया और उसे बहलाते हुए कुछ तसल्ली दी अरे इतना बे तावला क्यों होता है कि शाम में तो वो तेरे पास ही होगी। फिर जी भर के देखना। दिल बेचारा मान गया। फिर थोड़ी बहुत मिठाई वग़ैरा खाई फिर दोस्तों के साथ हम घर से बाहर चले आए।

विदाई के बाद हम लोग अपने घर आगए।


उधर मेरा घर सजाया जा चुका था मिट्टी के कच्चे मकान में सब कुछ सलीक़े से रखा हुआ था। एक पलंग पर दुल्हन की सेज सजाई गई, फूल गुल से सारा घर ख़ूबसूरत लग रहा था। अंधेरा सा होने लगा था। मगर दिल में ख़ुशी का दिया रोशन था।


औरतों ने दुल्हन का भव्य स्वागत किया और उसे घर के अंदर आँगन में ले गईं। बहुत सी महिलायें वहां जमा थीं, मुंह दिखाई की रस्म के बाद जाने लगीं। उस समय मेरा अंदर जाना मन था। तक़रीबन दस बजे में दुल्हन के कमरे में दाख़िल हुआ।


और दरवाज़ा बंद किया ही था कि खटखटाहट की आवाज़ आई मैंने पूछा कौन?

उधर से मेरी भाभी बोली! देवर जी में हूँ दरवाज़ा खोलो ये दूध का गिलास यहीं रह गया। ख़ैर मैंने दरवाज़ा खोला और इस से शरारती अंदाज़ में कहा आप भी ना। ये सब पहले से रख देतीं। अरे देवर जी इतनी बेचैनी किया है, बिटिया अब यहीं रहेंगी, ठीक अब आप जाएंगी भी या यूँही वक़्त बर्बाद करेंगी। ये कहते हुए मैंने दरवाज़ा फिर से बंद कर दिया और पलंग पर उस के क़रीब बैठ गया। मुझे कुछ समझ नहीं आरहा था। क्या बोलूँ ? क्या कहूं? ख़ैर जो कुछ मेरे दिल में आया उस की तारीफ़ में दिया।


मगर उस की तरफ़ से कोई आवाज़ ना आई। मैंने कहा देखो अब जल्दी से मुझे अपना ख़ूबसूरत और चाँद-सा चेहरा दिखा दो में अब और सब्र नहीं कर सकता? फिर भी कोई आवाज़ ना आई तो फिर मैंने कहा ’’ठीक है अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा और मैंने उस के चेहरे से घूँघट उठा दिया


नज़र पड़ते ही मेरे पांव से ज़मीन खिसक गई, में अपने होश गंवा बैठा। समझ में नहीं आ रहा था कि अब में करूँ।


क्या बात है? आप कुछ परेशान से हैं?' उसने बड़ी मासूमियत से पूछा:

ऐसी कोई बात नहीं है, तुम फ़िक्र ना करो।''मैंने उस का जवाब दिया

’’बात तो कुछ ज़रूर है? आप छिपा रहे हैं?'

मैंने उस का जवाब देते हुए कहा:''कोई बात नहीं सिर्फ सिरदर्द है।'

’’लाइए में दबा देती हूँ।''उसने मुहब्बत भरे लहजे में कहा

’’ नहीं नहीं मुझे ज़्यादा दर्द हो रहा है दबाने से ठीक नहीं होगा दवा लेनी ही होगी ''और ये कह कर में घर के बाहर चला आया


बाहर देखा सब लोग गहिरी नींद में सोए हुए हैं। छुप कर में नदी के किनारे जा बैठा।''ये कैसे हुआ&? ये तो सरासर फ़रेब है। '

''इतनी रात गए तो यहां क्या कर रहा है? ''अचानक मेरे दोस्त ने मुझे टोका

''यार पिता जी के साथ तु भी तो था? कैसी थी? फिर ये क्या:इतना बड़ा धोका? लड़की दिखाई गई और शादी किसी दूसरी के साथ। ये शादी नहीं मेरी बर्बादी है। '


शाहिद अरे यार ज़रा सब्र से काम ले।

मैंने कहा: नहीं यार में कल ही पिता जी से बात करूँगा, और लड़की वालों को बुला कर उस की लड़की वापिस करूंगा। इन लोगों ने मेरे साथ निहायत भद्दा मज़ाक़ किया है।

तभी मेरा दूसरा दोस्त ख़ालिद भी वहां आ गया और बोला

ठीक है , ठीक है! लड़की वो नहीं है दूसरी ही सही अच्छी भली तो है ना। और हाँ तुमने उसे कुछ कहा तो नहीं?

नहीं, मैंने उसे कुछ नहीं बताया। सिरदर्द का बहाना बनाकर चला आया हूँ।'


ख़ालिद ने कहा :''हाँ ये तो ने अच्छा किया? इस से बताना भी मत। अब शादी हो गई तो हो गई। भले ही उस के माँ बाप ने ग़लती की हो पर इस में इस लड़की का क्या क़सूर तुम उसे वापिस कर दोगे। इस से इस की बदनामी नहीं होगी। फिर कौन इस से शादी करेगा। फिर वो ज़िंदगी-भर ऐसे ही रहेगी। अपने लिए नहीं उस के लिए सोच। जो अपने घर, परिवार से विदा हो कर तेरे घर अपनी ज़िंदगी की ख़ुशीयां बटोरने आई है।

''वो ख़ुशीयां बटोरने आई है मेरी ख़ुशीयों का किया? ''

ख़ालिद मेरी बात सुनकर ख़ामोश हो गया।

मैंने भी सोचा उस की बात तो ठीक है, मगर में कैसे भूल जाता, वो लड़की, उस की ख़ूबसूरती, उस की बड़ी बड़ी चमकती आँखें मेरी निगाहों के सामने घूमने लगती थी।


मेरे लाख इनकार और विरोध के बाद जब कुछ ना बन पड़ा और दोस्तों की बातें सुनकर मायूस एक लुटे हुए मुसाफ़िर की तरह अपने घर लौट आया। देखा दुल्हन सोई हुई हैं। 3 बज रहे थे। में भी अपना तकिया लिए हुए अलग एक तरफ़ सो गया।


कुछ साल बाद जब क़रीब के गांव से ख़बर आई कि एक औरत ने अपने पति का क़तल कर दिया और अपने आशिक़ के साथ भाग गई है। मालूम करने पर पता चला कि वो वही लड़की थी जिससे उस की शादी होनी थी जिसकी ख़ूबसूरती पर वो दीवाना था। इस वक़्त उस के सिर पर बिजली सी कौंद गई अरे ये किया हुआ, तब उसे एहसास हुआ अच्छी सूरत हो ना हो अच्छी सीरत ज़रूरी है। इस धोका पर ख़ुदा का शुक्र अदा किया।

उठो जी! ये किया? सामने बिस्तर लगा हुआ है और आप सिगरेट लिए हुए कुर्सी पर सो रहे हैं

मैं हड़बड़ा कर नींद ही में बोला: सद्दो तुम बहुत अच्छी हो। 


हाँ हाँ अब ज़्यादा तारीफ़ की ज़रूरत नहीं है। आप ये बात हजारों बार बोल चुके हैं। ''अब चलीए बिस्तर पर लेट जाईए में आपके पांव दबा देती हूँ। !

Wednesday, 13 November 2024

Muslim Bachchion ki be rahravi

 مسلم بچیوں کی بے راہ روی اور ارتداد کا مسئلہ

محب اللہ قاسمی


یہ دور فتن ہے جہاں قدم قدم پر بے راہ روی اور فحاشی کے واقعات رو نما ہو رہے ہیں اس طرح یہ مسئلہ اب سنگین ہوتا جا رہاہے۔ جس نے مسلم معاشرے کو تباہ و برباد کر رکھا ہے۔ کیا شہر! کیا گاؤں اور کیا محلہ!! ہر جگہ اور ہر روز نت نئے مسائل کھڑے ہو رہے اور عجیب و غریب واقعات نے سب کو بے چین کر رکھا ہے۔ مگر بے فکری ایسی کہ ہم ان کے اسباب و وجوہات پر غور کرنا نہیں چاہتے۔ یا اس کے برے اثرات کو زیادہ سنجیدگی سے نہیں لیتے۔ اس وجہ سے یہ معاملہ مزید سنگین ہوتا جا رہا ہے۔ اگر ہم باریکی سے اس مسئلے پر غور کریں تو معلوم ہوگا کہ اس کے کئی وجوہات ہیں۔ جس پر غور فکر سے کام لینے کی شدید ضرورت ہے۔ جہاں بہت سے لوگ اس مسئلے کو لے بہت سنجیدہ ہیں اور غور و فکر کر رہے ہیں اور اس کے سد باب کی کوشش میں ہیں۔ مسلم معاشرے کا ایک فرد ہونے کی حیثیت سے میں  نے بھی بہت کچھ محسوس کیا، خیال آیا کہ آپ حضرات کے گوش گزار کروں۔ 


1 دین اور اسلامی تعلیمات سے ناواقفیت:

مسلمانوں کے کے اکثر گھروں میں دین سے دوری اور اسلامی تعلیمات سے ناواقفیت ہے اس لیے اولاد کو دینی تعلیم اور اسلامی تربیت سے آراستہ کرنا انھیں خدا کا خوف دلایا جائے اور آخرت کے خوفناک انجام سے متنہ کیا جائے، سیرت رسولﷺ ار سیرت صحابہؓ کا درس دینا بھی ضروری ہے جس کے لیے گھر میں کم ازکم ایک دو دن فیملی اجتماع بھی کر سکتے ہیں۔ جس سے گھر کا ماحول بھی دینی رہے گا اور تعلق باللہ کے سبب گھر میں برکت بھی ہوگی۔


2 موبائل کا بے جا استعمال:

موبائل نے ہمارے معاشرے میں عظیم انقلاب برپا کیا ہے جہاں اس کے فوائد ہیں وہیں ان کے انگنت نقصانات بھی رو نما ہو رہے ہیں۔ اس لیے موبائل کا غلط اور تعلیم کے نام پر بے جا استعمال جس پر کنٹرول کرنا بہت ضروری ہے کہ فحاشی کا فروغ اس کی بڑی وجہ ہے۔ یہ روکنا جب ہی مؤثر ہوگا کہ والدین بھی موبائل کے غیر ضروری استعمال سے بچیں۔


3 والدین اپنے بچوں کے تئیں غیر ذمہ دارانہ رویہ 

والدین کی اولین ذمہ داری ہے کہ وہ اپنے بچوں کی دیکھ ریکھ اور ان کی کفالت کے ساتھ ان سے ہمدردی اور محبت رویہ اپنائے اور ان کی تعلیم و تربیت پر خصوصی توجہ دے یہ نہ سوچیں کہ لڑکیاں ہمارے اوپر بوجھ ہے اسے کوسے طعنہ دیں بلکہ اس کا پورا خیال رکھیں اسے خدا کی جانب سے رحمت جانیں نا کہ  اسے بوجھ جان کر زحمت سمجھیں۔ اپنی اولاد کے متعلق والدین کا غیر ذمہ دارانہ رویہ یا چشم پوشی کرنا خواہ ان کی معاشی مصروفیت کی وجہ سے ہو یا اس کی والدہ کا اسے سپورٹ حاصل ہو بہتر نہیں ہے اس کا خیال رکھنا بہت ضروری ہے۔ 

 تعلیم و تربیت کے لیے گھر کا ماحول بنایا جائے یا مکتب میں اسے بھیجنے کی کوشش کی جائے بہتر ہو تو بڑی بچیوں کے لیے الگ ہی مکتب ہو جہاں استاد مرد کے بجائے خاتون استانی ہو جو لڑکیوں کی دینی تعلیم اور تربیت سے اچھی طرح واقفیت رکھتی ہو اور بہتر انداز میں بچوں کو تعلیم دے سکتی ہو وہاں بھیجا جائے۔ 


4  شادی میں تاخیر اور غیر ضروری رسومات

 شادی میں تاخیر اور غیر ضروری رسومات کے سبب نکاح کا مشکل ہونا، رشتہ کی تلاش اور بے جا توقعات کے سبب بچوں کی بڑی عمر تک شادی نہ ہو پانا بھی ایک وجہ ہے جس کے سبب غریب لڑکیاں یا تعلیم یافتہ لبرل خواتین بھی غیرمسلموں کا شکار ہو جاتی ہیں۔ اس کے لیے شادی بیاہ کے معاملے کو آسان کرنا اور معاشرے کے کچھ افراد مل کر شادی کرانے کی ذمہ داری اٹھانا بھی ضروری ہے جیسا کہ ہم بچپن میں دیکھتے تھے کہ کچھ لوگ اس معاملے میں بڑے ماہر ہوتے تھے مگر اب سب فکر معاش اور اعلی معیار کی تلاش میں پریشان ہیں۔


5 مسلم معاشرے کی بااثر شخصیات کی نگرانی

مسلم معاشرے کے ایسی بااثر شخصیات کو اس بات کے لیے تیار کرنا کہ وہ سماج کی اپنی بہن بیٹیوں کے متعلق کہیں میرج رجسٹرار کے یہاں معلوم کرتا رہے۔ جس سے صحیح صورت حال کا پتہ رہے اور وقت رہتے ہی اسے کا حل نکالا کیا جا سکے۔


6 مشورہ:

اس مسئلہ کو سنجیدگی سے لیتے ہوئے فوری اور عملی طور پر کیا کچھ کیا جاسکتا ہے اس کے لیے ہر گاؤں اور محلہ میں ایک نشست بلائی جائے اور اس میں باہمی مشورے سے کچھ بہتر طریقہ اختیار کرنا مناسب ہو اسے فوری انجام دیا جائے۔ ہر فرد اپنی اپنی ذمہ داری اٹھائے اور تعاونوا علی البر و التقوی کا ثبوت پیش کریں رونہ 

اس نسل نو کی حالت یونہی نہ ہوئی بد تر

اس میں تو قصور آخر اپنا بھی رہا ہوگا

محب اللہ قاسمی

Friday, 10 February 2023

Turky & Sirya Zalzala

 ترکی و شام میں زلزلے کی تباہ کاری اور انسانیت کی ذمہ داری

محب اللہ قاسمی


انسان جس کی فطرت کا خاصہ انس ومحبت ہے ۔ اس لیے اس کا ضمیر اسے باہمی میل جول اور تعلق کے لیے آمادہ کرتا ہے۔ دوسروں کے درد کو وہ اپنا درد محسوس کرتاہے۔ چوں کہ اسلام خود سلامتی ومحبت کا پیغام دیتاہے۔ اس لحاظ سے ہر اچھا انسان فطرتا لوگوں پر رحم کرتا ہے۔ ان کی مصیبت میں کام آتاہے۔ ان کی مشکلات آسان کرتا ہے اور ان کا سہارا بنتا ہے۔ اس لیے ایک حدیث میں ایسے لوگوں کی پہچان بتائی کہ بہترین انسان وہ انسان ہے جو دوسروں کے لیے نفع بخش ہو ۔


چند روز قبل ترکی اور شام میں زلزے کے شدید جھٹکے  نے قہر برپا کر دیا اور دیکھتے ہی دیکھتے سینکڑوں مکانات زمین بوس ہوگئے اور ہزاروں لوگوں کی موت واقع ہوگئی اور اب بھی ملبے کے ڈھیر میں پھنسے لوگوں کو نکالنے اور انھیں محفوظ مقامات پر لے جانے کی کوشش جاری ہے۔ان میں بچے بوڑھے جوان مرد و خواتین سب شامل ہیں۔ اس حادثے کی وجہ سے لاکھوں لوگ بے گھر ہوگئے۔کروڑوں اور اربوں کا نقصان ہوا ہے۔ سوشل میڈیا کے ذریعہ  جائے حادثات سے موصول ویڈیوز  نے جہاں انسانیت کو دہلا کر رکھ دیاہے۔وہی ان ویڈیوز اور تصاویر کی زبانی مصیبت کے شکار لوگوں کی راحت رسانی کا کام دیکھ کر خوشی بھی ہوئی جس میں مختلف ممالک کے لوگوں نے اپنی جانب سے اس امدادی کارروائی میں حصہ لیا ہے اور انسانیت کے تئیں درد مندی کا ثبوت پیش کیا۔ 

اس تکلیف دہ اور درد ناک وقت میں حکم راں کا اپنی رعیت کے لیے حوصلہ افزا، قوت بخش اور اللہ سے جوڑنے والا یہ بیان یقیناً اس شفا بخش مرہم پٹی کی طرح ہے جو گہرے سے گہرے زخم کو مندمل کرنے میں کامیاب ثابت ہوتے ہیں۔ آپ نے کہا : ’’اللہ نے جو مقدر کیا تھا، جو اس کی مشیت تھی وہ اس نے کیا، جنہیں ہم نے کھو دیا انہیں ہم واپس تو نہیں کر سکتے، البتہ جنہوں نے اپنا گھر کھویا ہے انہیں ہم اطمینان دلاتے ہیں کہ آپ کو اپنے گھروں کی تعمیر نو کیلئے  ایک "لیرہ" بھی نہیں صرف کرنا پڑے گا ، جو گھر اپ نے کھویا ہے ہم آپ کیلئے ان سے بہتر گھر بنائیں گے، اگر کسی شخص کو ایک درخت کا نقصان ہوا ہے تو ہم اسے دس درخت فراہم کریں گے۔‘‘

 ترک صدر رجب طیب اردغان کی جانب سے وائرل ان کے ہمدردی اور تسلی بھرے مذکورہ پیغام  نے عام انسانوں کو جذباتی طور پر بہت متاثر کیا اور  عوام نے اس حادثے سے دوچار ہوئے لوگوں کے ساتھ ان کے لیے بھی دعائیں کی۔


مصیبت زدہ، آفت کے ماروں، بے بسوں ولاچاروں اور بے کسوں کی صداؤں پر لبیک کہنے والے اور مجبور وپریشان لوگوں کا سہارا بننے والے ہی واقعی وہ انسان ہیں جن سے انسانیت زندہ ہے جو بلاتفریق مذہب وملت دوسروں کی مدد کے لیے ہر دم تیار رہتے ہیں  اور جب کبھی ،جہاں کہیں بھی انسانیت کسی مصیبت یا آفت سماوی یا ناگہانی حادثہ کا شکارہوتو ان کا ہمدرد بن کر ان کومشکلات سے نکالنے کی کوشش کرتے ہیں۔ یہ نہ صرف ایک اچھے انسان کا بلکہ اس کام کو بہتر انداز میں پورا کرنے والے بہترین معاشرہ اوراچھے ملک کی پہچان ہے۔یہ ان لوگوں کی طرح نہیں ہوتے جو دوسروں کے کراہنے پر قہقہا لگاتے ہیں اور معصوم لوگوں پر گولے داغے جانے کے مناظر کو پاپ کان کھاتے ہوئے دیکھ کر لطف اندوز ہوتے ہیں۔جب کہ 

درد دل کے واسطے پیدا کیا انسان کو 

ورنہ طاعت کے لیے کچھ کم نہ تھے کرّوبیاں

یہ بات درست ہے کہ جس دل میں محبت نہ ہو ہمیشہ اس میں نفرت کے الاوے پھوٹتے ہوں وہ انسان کا دل نہیں پتھر یا اس سے بھی بد تر ہے۔ اس لیے آئیے ہم انسانی ہمدردی کا ثبوت پیش کرے اور یہ عہد کریں کہ اپنے اہل خانہ پڑوسی سے لے کر جہاں تک ممکن ہوسکے تمام لوگوں سے اظہار یکجہتی قائم رکھیں گے اور بہ حیثیت انسان ایک دوسرے کی مصیبت میں کام آئیں گے اورنفرت کے مقابلے محبت کا پیغام عام کریں گے۔ اللہ تعالیٰ سے دعا ہے کہ اس حادثے کے شکار ان تمام لوگوں پر رحم فرمائے اور انھیں اس زلزلے سے آئی مصیبت سے نجات دلائے جو ابھی بھی ملبے کے ڈھیر میں پھنسے ہوئے زندگی کی کشمکش میں ہیں اور ان تمام لوگوں کو اجر عظیم عطا کرے جو اس نازک گھڑی میں مصبیبت زدہ لوگوں کے ساتھ راحت رسانی کا فریضہ انجام دے رہے ہیں۔

Per Lagayen ham

  पेड़ लगाएँ  मामूली खताओं को चलो माफ़ करें हम और पेड़ लगा कर के फेज़ा साफ़ करें हम आलुदगी इतनी है की दम घुटने लगा है माहौल से भी चाहिए इंसाफ़ करे...