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Monday, 11 August 2025

Fariza Insaniyat ka (kahani)

 کہانی

فریضہ انسانیت کا


آج کل دن زمانہ بڑا خراب ہو گیا ہے. انسانیت نام کی چیز نہیں ہے۔ سب آپس میں ہی لڑ جھگڑ رہے ہیں۔ پہلے ایسا نہیں تھا۔ سب کس قدر مل جل کر رہتے تھے۔ ایک دوسرے سے میل محبت سے رہنا ایک دوسرے کا خیال کرنا۔ کتنا اچھا ماحول تھا۔ اب تو نہ گھر میں محبت ہے نہ پڑوسی سے لگاؤ اور آگے بڑھیں تو لوگ ایک دوسرے کے مذہب سے بھی چڑھتے ہیں اور اسی کو لے کر بوال بھی ہوتا ہے۔ ڈرائیور بے چارہ ایک سرمیں بولے جا رہا تھا اور پسنجر کے ساتھ موجودہ حالات پر روشنی ڈال رہا تھا۔

اسی دوران پھٹ سے آواز آئی اور سی.... سی... کرتے گاڑی بیٹھنے لگی۔ ڈرائیور سمجھ گیا کہ ٹائر پنکچر ہو گیا ہے۔ 

اس نے آٹو سائڈ کرتے ہوئے کہا :

" گھبرائیے نہیں ہمارے پاس اسٹیپنی ہے ہم ابھی چکا بدل دیتے ہیں پھر چلیں گے۔" 

پیسنجر کو تھوڑا سکون ملا۔ کیوں کہ اس روٹ پر زیادہ گاڑی چلتی بھی نہیں ہے۔

گاؤں میں پیسنجر گاڑی کی ویسے بھی کی کم ہی سہولت ہوتی ہے۔ ڈرائیور مکیش تیواری بڑے محنتی آدمی تھے اور بڑی ایمانداری سے اپنا کام کرتے تھے۔ اس روٹ پر وہ برسوں سے گاڑی چلاتے آ رہے ہیں، زیادہ تر وہ ریزرو میں ہی چلتے ہیں خاص کر دکاندار کا سامان لانا لے جانا، مریضوں کو اسپتال پہنچانا کسی کو ٹرین پکڑنے کے لیے جانا ہو تو تھوڑا لمبا سفر ہوتا ہے۔ اس کے پاس ایک اسمارٹ فون تھا جس پر لوگ اسے روزانہ بکنگ کے لیے فون کرتے تھے۔ اسٹیپنی بدلنے کے دوران اس کا وہ موبائل فون گر گیا جس کا اسے احساس نہیں ہوا۔ 

اس دوران وہ پسنجر کو لے کر کئی چکر لگا چکا تھا. آدھا دن گزرنے پر جب اسے احساس ہوا کہ کیا بات ہے ابھی تک بکنگ کے لیے کوئی کال نہیں آئی۔ وہ اپنی جیب میں ہاتھ ڈال کر فون ڈھونڈنے لگا پتہ چلا فون ہے ہی نہیں۔ گاڑی میں ادھر ادھر تلاش کیا پھر بھی نہیں ملا۔ اس نے موٹر مکینک کو کہا : 

"بھائی تم نے میرا موبائل دیکھا شاید یہاں پنکچر بنوانے کے لیے چکا دیا تھا اس وقت گر گیا ہو۔ اس نے نہیں بھائی یہاں نہیں ہے۔" 

اب موبائل وہاں ملتا کیسے وہاں گرا ہو تب نا۔۔۔وہ تو راستے میں ہی گر گیا تھا اور اس درزی (ندیم انصاری) کے ہاتھ لگا جو روزانہ اپنی دکان پر سلائی کے لیے آتا جاتا تھا۔ 

اتفاق سے درزی کی سائکل کا اگلا چکہ موبائل فون پر چڑھا ہی تھا کہ وہ پھسل گیا دیکھا کہ کسی کا فون ہے۔ دائیں بائیں دیکھا تو کچھ لوگوں کا مکان دکھا. سوچا کہ ان ہی لوگوں کو دے دیتا ہوں مگر پھر خیال آیا کہ نہیں اسے اپنے پاس رکھ لیتا ہوں، جس کا ہوگا وہ فون کرے گا۔ اس دوران اس نمبر پر کئی لوگوں کے فون آئے سب نے کہا: 

مکیش کہاں ہے؟ گاڑی لے آنا، کرانا کا سامان لے جانا ہے۔ ادھر سے اس درزی نے جواب دیا یہ فون مکیش کے پاس نہیں ہے۔ اور مکیش کا پتہ اس گراہک سے پوچنے لگا. تو اس نے پوری تفصیلات بتائی اور اس طرح اس کو موبائل والے کی شناخت ہوگئی۔ 

ادھر مکیش اب پریشان ہو گیا کہ میرا فون آخر کہاں گرا؟ 

اس نے وہیں موٹر ورکشاپ کے پاس سے مکینک کا فون لے کر اپنے فون پر کال کیا۔ گھنٹی گئی ادھر سے آواز آئی کون ہے؟

اس نے کہا:

’’میرا نام مکیش ہے میں ڈرائیور ہوں. یہ میرا فون ہے، جو راستے میں گر گیا تھا۔‘‘ 

درزی نے پھر پوچھا: 

’’کہاں گھر ہے؟ کدھر مکان ہے؟‘‘

 اس نے جواب دیا: 

’’رشید پور مسجد کے پاس ہی میرا گھر ہے۔‘‘

 اب درزی کو یقین ہو گیا کہ یہ فون اسی کا ہے اس نے فورا ہی کہا:

’’آپ کا فون میرے ہی پاس ہے۔ راستے میں گرا تھا۔ آپ شام کو فون کیجئے میں پٹرول پمپ کے پاس ملوں گا وہیں آپ کو فون دے دوں گا۔‘‘

اب مکیش کی جان میں جان آئی اور شام ہوتے ہی وہ پٹرول پمپ کے پاس پہنچ گیا اور کسی سے فون لے کر اس سے بات کی۔ 

درزی نے موبائل دیتے ہوئے بتایا:

’’جانتے ہیں جہاں پر فون گرا ملا تھا وہاں میں نے کسی کو کیوں نہیں دیا کہ مجھے بھروسہ نہیں تھا کہ وہ آپ تک آپ کی چیز پہنچائیں گے۔ جب کہ  مجھے یقین تھا کہ جس کا بھی فون ہوگا. وہ ضرور بات کرتے گا۔ یہ لیجئے آپ کی امانت. اب میری ذمہ داری پوری ہوئی۔


مکیش نے اس کا شکریہ ادا کرتے ہوئے کہا: 

’’جانتے ہیں اتنی برائی اور نفرتوں کے بعد بھی یہ دنیا کیوں چل رہی ہے؟ آپ جیسے بہت سے ایمان دار آدمی اب بھی دنیا میں ہیں جو کسی طرح کا بھید بھاؤں نہیں کرتے اور اپنا کرتویہ سمجھتے ہیں۔ اس لیے یہ دھرتی بچی ہے. دھنیہ واد‘‘ 

درزی نے معصومیت سے جواب دیا. یہ انسانیت کا فریضہ ہے جو ہمیں ادا کرنا ہی تھا۔ ہم سب کو اپنی ذمہ داری ادا کرنی چاہیے. 

محب اللہ قاسمی


Tuesday, 29 July 2025

Kahani Hamdard By Mohibullah

 कहानी:  हमर्दद

✍️लेखक: मोहिबुल्लाह 


’’दिलावर इस प्लाट पर काम जारी रखना। याद रहे किसी मज़दूर की मज़दूरी  में कमी नहीं होनी चाहिए साथ ही अगर किसी की कोई मजबूरी हो तो ज़रूर ख़बर करना। मुझे ये बिलकुल पसंद नहीं कि गरीबी की दलदल से निकलने वाला शख़्स ग़रीबों के ख़ून पसीने से अपना महल तो खड़ा करले मगर बदले में इन मज़दूरों को बेबसी नाउम्मीदी के सिवा कुछ ना मिले। ''मैं पंद्रह दिन के लिए गांव जा रहा हूँ। माँ की तबीयत कुछ ठीक नहीं है । ये कहते हुए सूटकेस उठाकर नासिर अपने दफ़्तर से निकल ही रहाथा कि मंगलू चाचा ने कहा।


’’साहिब जी एक15 साल का जवान लड़का रेस्पशन पर खड़ा है। आपसे मिलना चाहता है। ''नासिर ने पूछा: 

''इस से पूछा नहीं , किया बात है ?'

मंगलू चाचा ने जवाब दिया ’’वो पढ़ाई छोड़कर काम की तलाश में भटक रहा है। मगर बात करने से लगता है कि वो तेज़ और होनहार है।'


नासिर ने अफ़सोस का करते हुए कहा

’’उसे पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए थी! ख़ैर उसे बुलाओ। ये कह कर नासिर वापिस अपने केबिन में चला आया और अपनी कुर्सी पर बैठ गया।'

मंगलू चाचा लड़के को लेकर हाज़िर हुआ।


लड़के ने सलाम दुआ के बाद नासिर के सामने अपनी बात रखी।

’’में एक ग़रीब हूँ, मेरे कई भाई बहन हैं और पिता जी लाचार हैं। इसलिए मैं नौकरी करना चाहता हूँ ।'


नासिर ने पूछा:

’’ लेकिन मुझे मालूम हुआ है कि तुम पढ़ाई कर रहे थे और पढने में तेज भी हो। फिर पढ़ाई क्यों नहीं करते ? '


लड़के ने बड़ी मासूमियत के साथ जवाब दिया:

’’आप ही बताईए अब ऐसी हालत में मेरा पढ़ना ज़रूरी है या घर वालों के जीने के लिए बुनियादी ज़रूरतें पूरी करना?

में एक जवान हूँ। काम करसकता हूँ तो फिर अपने घर वालों के लिए नौकरी क्यों ना करूँ। 

दो पैसे मिलेंगे तो उनको कुछ ख़लाओंगा। 

नहीं तो र्न उनके भीक मांगने की नौबत आएगी, 

साहब जी मैं ख़ुद भीक मांग सकता हूँ मगर में अपने माता पिता को भीक मांगते नहीं देख सकता।'


इस की बातों ने नासिर को झिझोड़ कर रख दिया और वो अपनी पुरानी यादों में खो गया।


नासिर पढ़ने में बहुत तेज़, संस्कारी और हंसमुख लड़का था। इस के पिता जी उसे पढ़ाना चाहते थे इसलिए उसे पटना के अच्छे बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया था,जहां वो अब दसवीं क्लास तक पहुंच चुका था। मगर एक दिन उस के घर से एक पत्र आया जो उस के लिए सर पर आसमान से बिजली गिरने के बराबर था। ख़ैर ख़ैरीयत के बाद पत्र में लिखा था।


’’तुम्हारा बाप अब बीमारी के कारन बहुत माज़ूर हो गया है , थोड़ा बहुत वो कमा कर भेजता है जो घर के इतने खर्च के सामने ऊंट के मुँह में ज़ीरा के मानिंद है। अब हम लोग तुम्हारे पढाई-लिखाई  के अख़राजात क्या पूरे करें यहां घर पर हम लोगों के लिए दो वक़्त की रोटी भी मिलना मुश्किल हो रहा है। दिन ब दिन क़र्ज़ पे क़र्ज़ का बोझ और इस का ब्याज अलग हम लोग बहुत मुश्किल में हैं। तुम्हारी प्यारी दादी'


नासिर का दिल पूरी तरह टूट चुका था वो और पढ़ना चाहता था मगर जब भी वो लालटैन के सामने अपनी किताब खोलता उसे ख़त के वो सारे जुमले कांटे की तरह उस के जिस्म में चुभते हुए  महसू करता । वो जलते हुए लालटैन को अपना दिल तसव्वुर करने लगा जिसमें उस का ख़ून मिट्टी तेल के मानिंद जल रहा था।


धीरे धीरे पढ़ाई से इस का दिल हटने लगा और वो दौर स्कालरशिप का नहीं था या उसे दुसरे  किसी से आर्थिक सहायता का सहारा मयस्सर नहीं था , फिर वो ये भी नहीं चाहता था कि अब इन किताबों के पन्नों पर लिखे इन अक्षरों को पढ़े और इस के घर वाले परेशान हो कर अपनी ज़िंदगी तबाह करें।


फिर वो कमाई के तरीक़ों के बारे में सोचने लगा, कभी सोचता किसी दूकान में नौकरी करलूं मगर वहां तनख़्वाह महीने पर मिलेगी, कभी सोचता कि गाड़ी का कंडक्टर बन जाऊं रोजाना आमदनी होगी। मालिक से बोल कर रोज़ाना पैसे ले लिया करूँगा। फिर सोचता कि नहीं इस में भी चाहे मेहनत कितनी भी कर लूं फिक्स आमदनी होगी और दुसरे के अधीन रहना होगा सो अलग। इसलिए सोचा क्यों ना ड्राईवर बन जाऊं और किराए से आटो लेकर गाड़ी चलाऊं, किराया देकर जो बचा सो अपना और ख़ूब मेहनत करूंगा और अपने माता-पिता और घर वालों का फ़ौरी सहारा बन जाऊँगा। इस तरह उसने पटना में ही स्कूल छोड़कर ड्राइविंग करना सीख लिया इस तरह वो एक अच्छा ड्राईवर बन गया और कमाने लगा। 


कुछ दिन बाद जब घर आया और घर वालों को मालूम हुआ तो उस के पिता जी को बड़ी तकलीफ़ हुई उसने कहा:


’’बेटे मैं मानता हूँ कि मैं बहुत ग़रीब हो गया हूँ और अब मुझ से इतना काम नहीं हो पाता मगर ! में अभी मरा नहीं हूँ। फ़िर ये ये क्या ... तुमने पढ़ाई ही छोड़ दी। सब्र करते ये कठिन दिन थे गुज़र जाते'


नासिर ने कहा: 

हाँ पिता जी खुदा आप को सलामत रखे। मैं जानता हूँ कि इस से आपको तकलीफ़ पहुंची होगी। मगर में क्या करता, में आप लोगों की परेशानी देख नहीं सकता। 

इशवर ने चाहा तो धीरे धीरे सारे क़र्ज़ अदा हो जाऐंगे और आपको भी काम करने की ज़रूरत ना होगी।


नासिर गाड़ी चलाता रहा और एक ज़िम्मेदार की हैसियत से अपने घर परिवार की ज़रूरीयात पूरी करने में मसरूफ़ हो गया। अब वो धीरे धरे गाड़ी चलाना छोड़ कर मकान बनाने का कंट्रेट लेना शुरू कर दिया इस तरह वो बहुत बड़ा कांट्रेक्टर और बिल्डर हो गया। ''हौसला बिल्डर ग्रुपस' के नाम से उसने अपनी कंपनी खोली और ना सिर्फ अपने लिए बल्कि वो लोगों का भी हमदर्द  बन कर सामने आया।


आज वो एक बहुत बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक बन चुका था। इस दौरान उस के पिता जी का देहांत हो गया और वह अपनी माँ बहन और भाईयों की देख-रेख  और उनकी पूरी ज़िम्मेदारीयों को बहुत अच्छी तरह अंजाम देने लगा।


सर ....सर ! ..सर आप कहाँ खो गए? इस ग़रीब लड़के ने टेबल पर हाथ रखते हुए कहा:

हाँ..हाँ तो तुम कह रहे थे कि अपनी गरीबी की वजह से पढ़ना नहीं चाहते। ख़ैर परेशान ना हो । हमारे यहाँ तो कोई नौकरी नहीं है अलबत्ता तुम्हारी पढाई के सारे खर्चे और घरवालों के लिए भी उनके जरुरी अख़राजात अब मैं बर्दाश्त करूँगा।


ये सुनकर उस की आँखें डबडबाने लगीं । उसने ताज्जुब भरे अंदाज़ में कहा:

हाँ सर...! क्या ऐसा हो सकता है? आप मेरे और घर वालों के अख़राजात बर्दाश्त करेंगे।

नासिर ने कहा हाँ मगर उस के बदले मुझे कुछ चाहिए।


लड़का चौंका और में पूछा:

क्या-क्या सर? किया चाहिए? मैं तो कुछ दे नहीं सकता !


फिर नासिर ने कहा तुम्हें इस के बदले अपनी मेहनत से अपनी शिक्षा  पूरी करनी होगी और अपनी पूरी लगन के साथ एक अच्छा ऑफीसर बन कर दिखाना होगा। बोलो राज़ी हो?


उसने कहा बिलकुल सर आप इन्फ़सान नहीं फ़रिश्रता हैं, हमारे लिए मसीहा के मानिंद हैं। मैं आपकी उम्केमीद के  मुताबिक़ अपनी शिक्षा पूरी करूँगा।


नासिर ने अपने मैनेजर को बुला कर इस बच्सेचे से  पूरी जानकारी लेकर उस के घर हर माह रक़म भेजने और इस के किसी अच्छे स्कूल में दाख़िला की कार्रवाई पूरी करने का आदेश दिया।


तभी मंगलू चाचा ने आवाज़ दी:

हुज़ूर गाड़ी आ गई और नासिर का सामान उठा कर गाड़ी में डालने के लिए चल पड़ा। नासिर ने इस लड़के से कहा ठीक है। अल्लाह हाफ़िज़ मैं पंद्रह दिन के लिए घर जा रहा हूँ आने के बाद तुमसे तुम्हारे स्कूल में मिलूँगा।

Thursday, 24 July 2025

Kahani Fareeb (Hindi)

 कहानी ..... फ़रेब

मोहिबुल्लाह 


क्यों जी आपकी तबीयत तो ठीक है? क्या सोच रहे हैं। मैं पोते के पास जार ही ज़रा देखूं क्यों रो रहा है। ठीक है सद्दो (सादिया) जाओ मगर जल्दी आना!


फिर उस ने टेबल पर रखे माचिस से सिगरेट जलाया और कश लेते हुए यादों के समुंद्र में डूब हो गया

25 साल गुज़र गए जब सद्दो दुल्हन बन कर घर आई थी। आज भी में इस वाक़िया को नहीं भूल पाया। ससुराल वाले हमेशा मेरे गुस्से का शिकार रहते थे और मैं मन-मौजी, जो जी में आया करता गया।

लेकिन वो हसीन ख़ूबसूरत परी जिसका चेहरा हर-दम मेरी निगाहों के सामने घूमता रहता था। गुज़रते समय के साथ कहीं खो गया !


मैं बहुत ख़ुश था, ख़ुशी की बात ही थी। मेरी शादी जो हो रही थी। लड़की गावं से कुछ फ़ासले पर दूसरे गावं  की थी जिसे में अपने पिता जी और कुछ दोस्तों के साथ जा कर देखा भी था। लंबा क़द, सुराही दार गर्दन, आँखें बड़ी बड़ी, चेहरा किताबी, रंग बिलकुल साफ़ कुल मिलाकर वो बहुत ख़ूबसूरत थी। ख़ानदान और घर घराना भी अच्छा था।


घर में सब लोग ख़ुश थे पिता जी ने कुछ लोगों से बतौर मेहमान जिनमें कुछ मेरे दोस्त भी थे, शादी की इस तक़रीब में शिरकत के लिए दावत दी थी। पिता जी मेहमानों के स्वागत में खड़े थे और घरवालों से जल्दी तैयार होने के लिए कह रहे थे।


मेरे सामने हर वक़त उसी का चेहरा घूमता रहता था, फ़ोन का ज़माना तो था नहीं कि फ़ोन करता जैसा कि इस दौर में हो रहा है

बारात लड़की वालों के दरवाज़े पर पहुंच गई। हल्का नाश्ता के बाद निकाह की कार्रवाई शुरू हुई। क़ाज़ी साहिब के सामने मैं ख़ामोश बुत की तरह बैठा रहा वो क्या कह रहे हैं? क्या-क्या पढ़ा गया। मुझे कुछ पता ही नहीं चला अचानक जब क़ाज़ी साहिब ने पूछा कि आपने क़बूल किया।


ख़यालों का सिलसिला टूट गया और मैं एकाएक बोल गया ' हाँ हाँ मैंने क़बूल किया।'

लोगों को थोड़ी हैरानी हुई कि सब शर्म से धीमी आवाज़ में बोलते हैं ये तो अजीब लड़का है। मगर कोई क्या कह सकता था बात सही थी, बोलना तो था ही ज़रा ज़ोर से बोल गया।


निकाह के बाद मुझे ज़नान ख़ाना में बुलाया गया, मैंने सोचा मुम्किन है कहीं घर में मुझे उसे देखने का मौक़ा मिले कि दुल्हन के जोड़े में वो कैसी दुखती है मगर वही पुरानी बात मुझे वहां देखने का कोई मौक़ा नहीं दिया गया। क्यों कि ऐसी कोई रस्म भी नहीं थी। ख़ैर दिल को मना लिया और उसे बहलाते हुए कुछ तसल्ली दी अरे इतना बे तावला क्यों होता है कि शाम में तो वो तेरे पास ही होगी। फिर जी भर के देखना। दिल बेचारा मान गया। फिर थोड़ी बहुत मिठाई वग़ैरा खाई फिर दोस्तों के साथ हम घर से बाहर चले आए।

विदाई के बाद हम लोग अपने घर आगए।


उधर मेरा घर सजाया जा चुका था मिट्टी के कच्चे मकान में सब कुछ सलीक़े से रखा हुआ था। एक पलंग पर दुल्हन की सेज सजाई गई, फूल गुल से सारा घर ख़ूबसूरत लग रहा था। अंधेरा सा होने लगा था। मगर दिल में ख़ुशी का दिया रोशन था।


औरतों ने दुल्हन का भव्य स्वागत किया और उसे घर के अंदर आँगन में ले गईं। बहुत सी महिलायें वहां जमा थीं, मुंह दिखाई की रस्म के बाद जाने लगीं। उस समय मेरा अंदर जाना मन था। तक़रीबन दस बजे में दुल्हन के कमरे में दाख़िल हुआ।


और दरवाज़ा बंद किया ही था कि खटखटाहट की आवाज़ आई मैंने पूछा कौन?

उधर से मेरी भाभी बोली! देवर जी में हूँ दरवाज़ा खोलो ये दूध का गिलास यहीं रह गया। ख़ैर मैंने दरवाज़ा खोला और इस से शरारती अंदाज़ में कहा आप भी ना। ये सब पहले से रख देतीं। अरे देवर जी इतनी बेचैनी किया है, बिटिया अब यहीं रहेंगी, ठीक अब आप जाएंगी भी या यूँही वक़्त बर्बाद करेंगी। ये कहते हुए मैंने दरवाज़ा फिर से बंद कर दिया और पलंग पर उस के क़रीब बैठ गया। मुझे कुछ समझ नहीं आरहा था। क्या बोलूँ ? क्या कहूं? ख़ैर जो कुछ मेरे दिल में आया उस की तारीफ़ में दिया।


मगर उस की तरफ़ से कोई आवाज़ ना आई। मैंने कहा देखो अब जल्दी से मुझे अपना ख़ूबसूरत और चाँद-सा चेहरा दिखा दो में अब और सब्र नहीं कर सकता? फिर भी कोई आवाज़ ना आई तो फिर मैंने कहा ’’ठीक है अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा और मैंने उस के चेहरे से घूँघट उठा दिया


नज़र पड़ते ही मेरे पांव से ज़मीन खिसक गई, में अपने होश गंवा बैठा। समझ में नहीं आ रहा था कि अब में करूँ।


क्या बात है? आप कुछ परेशान से हैं?' उसने बड़ी मासूमियत से पूछा:

ऐसी कोई बात नहीं है, तुम फ़िक्र ना करो।''मैंने उस का जवाब दिया

’’बात तो कुछ ज़रूर है? आप छिपा रहे हैं?'

मैंने उस का जवाब देते हुए कहा:''कोई बात नहीं सिर्फ सिरदर्द है।'

’’लाइए में दबा देती हूँ।''उसने मुहब्बत भरे लहजे में कहा

’’ नहीं नहीं मुझे ज़्यादा दर्द हो रहा है दबाने से ठीक नहीं होगा दवा लेनी ही होगी ''और ये कह कर में घर के बाहर चला आया


बाहर देखा सब लोग गहिरी नींद में सोए हुए हैं। छुप कर में नदी के किनारे जा बैठा।''ये कैसे हुआ&? ये तो सरासर फ़रेब है। '

''इतनी रात गए तो यहां क्या कर रहा है? ''अचानक मेरे दोस्त ने मुझे टोका

''यार पिता जी के साथ तु भी तो था? कैसी थी? फिर ये क्या:इतना बड़ा धोका? लड़की दिखाई गई और शादी किसी दूसरी के साथ। ये शादी नहीं मेरी बर्बादी है। '


शाहिद अरे यार ज़रा सब्र से काम ले।

मैंने कहा: नहीं यार में कल ही पिता जी से बात करूँगा, और लड़की वालों को बुला कर उस की लड़की वापिस करूंगा। इन लोगों ने मेरे साथ निहायत भद्दा मज़ाक़ किया है।

तभी मेरा दूसरा दोस्त ख़ालिद भी वहां आ गया और बोला

ठीक है , ठीक है! लड़की वो नहीं है दूसरी ही सही अच्छी भली तो है ना। और हाँ तुमने उसे कुछ कहा तो नहीं?

नहीं, मैंने उसे कुछ नहीं बताया। सिरदर्द का बहाना बनाकर चला आया हूँ।'


ख़ालिद ने कहा :''हाँ ये तो ने अच्छा किया? इस से बताना भी मत। अब शादी हो गई तो हो गई। भले ही उस के माँ बाप ने ग़लती की हो पर इस में इस लड़की का क्या क़सूर तुम उसे वापिस कर दोगे। इस से इस की बदनामी नहीं होगी। फिर कौन इस से शादी करेगा। फिर वो ज़िंदगी-भर ऐसे ही रहेगी। अपने लिए नहीं उस के लिए सोच। जो अपने घर, परिवार से विदा हो कर तेरे घर अपनी ज़िंदगी की ख़ुशीयां बटोरने आई है।

''वो ख़ुशीयां बटोरने आई है मेरी ख़ुशीयों का किया? ''

ख़ालिद मेरी बात सुनकर ख़ामोश हो गया।

मैंने भी सोचा उस की बात तो ठीक है, मगर में कैसे भूल जाता, वो लड़की, उस की ख़ूबसूरती, उस की बड़ी बड़ी चमकती आँखें मेरी निगाहों के सामने घूमने लगती थी।


मेरे लाख इनकार और विरोध के बाद जब कुछ ना बन पड़ा और दोस्तों की बातें सुनकर मायूस एक लुटे हुए मुसाफ़िर की तरह अपने घर लौट आया। देखा दुल्हन सोई हुई हैं। 3 बज रहे थे। में भी अपना तकिया लिए हुए अलग एक तरफ़ सो गया।


कुछ साल बाद जब क़रीब के गांव से ख़बर आई कि एक औरत ने अपने पति का क़तल कर दिया और अपने आशिक़ के साथ भाग गई है। मालूम करने पर पता चला कि वो वही लड़की थी जिससे उस की शादी होनी थी जिसकी ख़ूबसूरती पर वो दीवाना था। इस वक़्त उस के सिर पर बिजली सी कौंद गई अरे ये किया हुआ, तब उसे एहसास हुआ अच्छी सूरत हो ना हो अच्छी सीरत ज़रूरी है। इस धोका पर ख़ुदा का शुक्र अदा किया।

उठो जी! ये किया? सामने बिस्तर लगा हुआ है और आप सिगरेट लिए हुए कुर्सी पर सो रहे हैं

मैं हड़बड़ा कर नींद ही में बोला: सद्दो तुम बहुत अच्छी हो। 


हाँ हाँ अब ज़्यादा तारीफ़ की ज़रूरत नहीं है। आप ये बात हजारों बार बोल चुके हैं। ''अब चलीए बिस्तर पर लेट जाईए में आपके पांव दबा देती हूँ। !

Sunday, 18 October 2020

कहानी ...भात....!

कहानी ...भात....!


गीता देवी एक ग़रीब मज़दूर की पत्नी थी, जिसकी दो बेटियां थीं। पहली बेटी गायत्री देवी, जो शादी के दस साल बाद पैदा हुई थी। आस्था के अनुसार इस बच्ची को पाने के लिए उस के मज़दूर बाप ने कई मंदिरों के चौखट लॉनगे, बड़ी मिन्नतें मांगें थीं। इस बेटी के दो साल बाद एक दूसरी लड़की का भी जन्म हुआ । मगर हाय क़िस्मत अभी इस दूसरी बच्चे के जन्म को ढाई साल ही हुए थे कि गीता देवी के मज़दूर पती का देहांत हो गया, जिसकी मज़दूरी के थोड़े पैसे से बड़ी कठनाई के साथ उस के घर चूल्हा जल पाता था। मगर इस दुख भरी की हालत में भी जैसे तैसे समय गुज़र रहा था!

पति की घर में सिर्फ गीता देवी थी और इस की दो बेटियां घर की ज़िम्मेदारी उस के कमजोर कंधे पर आ जाने के बाद उसने भी मज़दूरी शुरू कर दी। मगर कमज़ोर जिस्म के सबब इस से मज़दूरी नहीं हो पाती थी।


वो ख़ुदग़रज़ी और सुअर्थी पर्यावरण के ऐसे दूर से गुज़र रही थी कि जिससे भी उधार माँगती ,लोग साफ़ तौर पर उसे मना कर देते थे। अपने बच्चों की ख़ातिर रोज़ाना चूल्हा जलाने के लिए उस के पास, अक्सर राशन नहीं होता था, जिसका नतीजा हमेशा घर में फ़ाक़ा और भूके रहने की नौबत आती थी।


एक दिन बड़ी बेटी भूक से तड़प कर रोती, बिलकती भात भात चिल्ला रही थी, मगर माँ उसे तसल्ली देते हुए कह रही थी।
’’
रुक जा बेटी अभी भात पकाती हूँ और तुझे खिलाती हूँ।'


रोज़ की तरह उसने राशन के बर्तन में झाँका, मगर इस में चावल का एक दाना भी ना था। अब क्या करे, बेटी भूक से छटपटा रही थी। किसी के ज़रीया पता चला कि गांव में अभी राशन मिल रहा है। वो अपना राशन कार्ड लेकर जाये और राशन ले आए।


ये सुनकर उसने अपना राशन कार्ड निकाला और बोरी लेकर डीलर के पास भागती हुई गई।
वहां पहुंच कर उसने डीलर से कहा:
भया मुझे राशन दे दो। घर में कुछ भी खाने को नहीं है


डीलर ने राशन कार्ड लिया और अपने रजिस्टर से मिलाया। मिलान पर कार्ड दरुस्त निकला, मगर जिन्हें राशन दिया जाये, इस सूची में इस कार्ड का नंबर नहीं था। जब उसे लैपटॉप पर चैक किया। तो पता चला कि इस का राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं है।
इस पर डीलर को ग़ुस्सा आया कहने लगा।

जाओ आधार कार्ड से लिंक कराओ। इस के बिना राशन नहीं मिलेगा।


गीता देवी डीलर से मिन्नत समाजत करने लगी।
मेरी बेटी भूक से बे हाल है। राशन में कुछ चावल ही दे दो कि भात पका कर बेटी को खीला दूं , वर्ना मेरी बेटी भूक से मर जायेगी


मगर डीलर के दिल में ज़रा भी दया नहीं आई। उसने उसे ये कहते हुए वहां से भगा दिया
जाओ जब तक ये राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं होगा ,तुम्हें राशन का एक दाना भी नहीं नहीं मिलेगा।


बेचारी गीता देवी इन्सानों की दुनिया से दया की भीक ना मिलने पर मायूस घर लौट आई। अपनी बेटी को गले लगा या। इस से पहले कि वो इस से कुछ बोलती उस की आख़िरी आवाज़ भात भात कहते हुए बंद गई।
.....
और गीता देवी उसे सीने से लगाए ज़ोर से चिल्लाते हुए इस डीजीटल बेरहम दुनिया पर मातम कर रही थी।


(कहानी लेखक .....मोहिब्बुल्लाह क़ासिमी)

Email: mohibbullah.qasmi@gmail.com

 


Tuesday, 31 July 2018

Story : Saheli Ki Shadi


سہیلی کی شادی

ہنستی کھیلتی چلبلی سی نیک اور خوبصورت بانو اس گاؤں کی پڑھی لکھی لڑکی ہے جہاں کبھی مرد بھی بہت کم پڑھے لکھے ملتے تھے۔ ایک تو گاؤں کی غربت دوسری پڑھائی سے بے توجہی ،جس کے سبب لوگ اتنا نہیں پڑھ لکھ پارہے تھے۔

مگر خاص بات یہ تھی کہ بانوکے والد پڑھے لکھے سرکاری ملازم تھے اور بھائی بھی پڑھا لکھا تھا۔ اس طرح اس کا گھرانا ایک حد تک تعلیم یافتہ تھا۔ بانوں اپنی سہیلیوں کو اللہ رسول کی باتیں پڑھ کر سناتی اور انھیں پڑھنے کے لیے آمادہ کرتی اورلڑکیاں ان کی باتیں بہ غور سنتی ۔

ایک دن بانو اپنی سہیلیوں کے ساتھ کھیل رہی تھی کہ کچھ لڑکیاں آئیں اور کہنے لگیں: ارے چل ،منگلو چاچا کے گھر کچھ مہمان آئےہیں۔ سنا ہے شبنم کو دیکھنے لڑکے والے آئے ہیں اور یہ بھی سنا ہے کہ لڑکا بھی آیا ہے۔ 

ایک لڑکی اسی درمیان بول پڑی : ہائے اللہ ! لڑکا بھی آیا ہے ۔ کیا وہ بھی لڑکی دیکھے گا؟
ہاں اس کی شرط ہے اور اس سے کچھ پوچھے گابھی؟

اس پر سلمیٰ نے جواب دیا : ہاں ،یہ پہلی بار ہورہا ہے۔

تبھی بانو بولی :تو اس میں برا کیا ہے؟ اچھا ہے۔ شادی ہو رہی ہے۔ کوئی مذاق تھوڑی نا ہے۔ اگر وہ لڑکی کو دیکھے گا تو کیا لڑکی لڑکے کو نہیں دیکھے گی؟ دونوں ایک دوسرے کو دیکھ لیں گے اور جو پوچھنا ہوگا، پوچھ لیں گے۔ چلو ہم لوگ بھی چلتے ہیں نغمہ چاچی کے گھر ۔ شبنم نے ہم لوگو کو بتایا نہیں کہ اسے دیکھنے کے لیے کچھ لوگ آنے والے ہیں ؟ یہ بولتے ہوئے ساری سہیلیاں منگلو چاچا کے گھر پیچھے کے دروازے سے پہنچ گئیں۔

نغمہ نے جب ان کو دیکھا تو کہنے لگی: بانو کی اور دیکھتے ہوئے کہنے لگی اچھا ہوا، بانو آ گئی۔ ابھی ہم تیرے گھر بلاوا بھیجنے ہی والے تھے۔جا شبنم کو سنبھال اور اسے کچھ سکھادے۔جانے کیا کچھ بول دے وہاں پر؟

بانو بولی: چاچی تم اب بالکل فکر نہ کرو، ہم لوگ سب سنبھال لیں گے۔جیسے ہی بانو شبنم کے پاس پہنچی،لگی شکاتیں کرنے ۔

’’ کیوں رے تو نے مجھے بتایا نہیں کہ لوگ تجھے دیکھنے آنے والے ہیں۔‘‘

اس سے پہلے کہ شبنم کچھ بولتی بانو نے کہا : 
’’چپ رہ اب زیادہ مت بول ورنہ بولنے کے لیے کچھ نہیں رہے گا۔ تجھے تو ابھی بہت کچھ بولنا ہے۔‘‘

پھرسب نے شبنم کو سنوارا ،بہت کچھ سکھایا اور اسے لے کر مہمان کے کمرے میں آئی۔
لڑکا کچھ خاص پڑھا نہیں تھا، پر اس زمانے کسی کو کلام پاک پڑھنا آتا ہو ،اردو ،ہندی لکھ لیتا ہو تو اسے پڑھا لکھا سمجھا جاتا تھا۔ لڑکا بھی بس اتناہی پڑھا تھا پر تھا ہوشیار ۔
اس نے شبنم کو دیکھا اور شبنم نے بھی اسے دیکھا۔ دونوں ایک دوسرے کو پسند آگئے۔ 
اب باری تھی سوال جواب کی۔
لڑکا: تمہارا نام کیا ہے؟
لڑکی : شبنم ...شبنم رانی!
لڑکا.تمہیں قرآن پڑھنا آتا ہے ؟ اردو لکھ سکتی ہو؟؟
شنبم : مجھے پڑھنا لکھنا نہیں آتا۔ یہ بول کر وہ چپ ہوگئی ۔

تبھی بانو بول پڑی:
’’بھائی صاحب ! مانا کہ اسے پڑھنا نہیں آتا، پر گھر کا سارا کام کاج یہی توکرتی ہے ۔ چادر بھی کاڑھ لیتی ہے ، یہ جو پردہ لگاہے نا۔ اس پر یہ بیل بوٹے سب اسی نے بنائے ہیں۔ اس نے پڑھنے پر توجہ نہیں دی ،ورنہ ہم سب سے آگے نکل جاتی۔ اتنی تیز ہے ہماری شنورانی!

لڑکا اپنے ابو کے کان میں کہنے لگا:
’’اگر واقعی یہ اس قدر تیز ہے اور پڑھ سکتی ہے تو پھر شادی پکی، مگر اس شرط کے ساتھ کہ چھ ماہ بعدہماری سگائی ہوگی۔ اس چھ ماہ میں اسے کم ازکم قرآن پڑھنا تو آجانا چاہیے؟

باپ نے کہا: ’’ہاں مجھے لگتا ہے، یہ پڑھ لے گی!‘‘
پھرسب کے سامنے لڑکے کے والد نے لڑکی کے والدسے کہا:
’’ ہمیں یہ رشتہ منظور ہے اور اپنے بیٹے کی شرط کا اعادہ کیا۔‘‘
بانو کی اس تیز زبان نے بات توبنا دی اور مہمان چلے گئے، پر چھ ماہ میں شبنم جیسی کند ذہن لڑکی کو پڑھانا کوئی معمولی کام نہ تھا۔ خیر سب نے لڈو کھائے، پر بانو لڈوہاتھ میں لیے یہ سوچ میں غرق ہوگئی کہ کیا شبنم چھ ماہ میں قرآن پڑھ لے گی؟

اتنے میں شنبم نے اس کے ہاتھ کا لڈو اس کے منہ میں ڈال دیا ۔ ارے کھا: اب کیا سوچتی ہے۔ میں اتنی تیز ہوں نا ،تو اب توہی مجھے پڑھائے گی ۔ نغمہ چاچی بھی بول پڑی:
’’ ہاں بیٹی ۔اب یہ عزت تیرے ہاتھ میں ہے۔‘‘

بانو نے یہ سارا قصہ اپنی ماں کو آکر بتایا ،ماں نے بھی تسلی دی :
’’ بیٹی! واقعی تونے بہت اچھا کام کیا ۔پرتونےشبنم کی جھوٹی تعریف کرکے اسے آزمائش میں ڈال دیا ہے اب تو ہی اس کے لیے کچھ کر ۔اسے دن رات محنت کرکے پڑھا ،تاکہ وہ چھ ماہ میں اچھی طرح قرآن پڑھنے لگے۔

ماں کی باتیں سن کر بانو کو لگا کہ اب یہ میری ذمہ داری ہے۔ اگر میں نے ایسا نہیں کیا اور اسے نہ پڑھاسکی تو اس کا یہ رشتہ ٹوٹ جائے گا۔ بات پھیل چکی ہے۔ اگر رشتہ ٹوٹ گیا تو رسوائی ہوگی۔

پھر کیا تھا۔ بانو نے دن رات ایک کردیے ۔بارش کے موسم میں بھی وہ اپنے گھر سے سپارہ لے کر جاتی اور شبنم کو خوب پڑھاتی،یاد کراتی۔ دھیرے دھیرے وہ اس قابل ہوگئی کہ الفاظ کوپڑھ سکے ۔ ایک دن بانو نے شبنم سے کہا :

’’دیکھ بہن، یا تو تجھے یہ پڑھنا ہے یا پھر مرنا ہے۔ کیوں کہ تو بھی اسے پسند ہے اور وہ بھی تجھے پسند ہے۔ بیچ میں کوئی فاصلہ ہے تو وہ تیری پڑھائی کا ہے۔ بہن! اب وقت کم ہے ۔تجھے اور محنت کرنی ہوگی۔‘‘

یہ بات شبنم کے دماغ میں گھر کر گئی اور اس نے بھی جی جان لگادیا ، جس لڑکی کو حروف پہچاننے میں اتنی دشواری ہورہی تھی کہ بہ مشکل لفظوں کو ملا ملا کر پڑھنے کی کوشش کرتی تھی اب کچھ ہی دنوں میں وہ بہت اچھا قرآن پڑھنے لگی تھی اس طرح اس کی شادی کا خواب اسے پورا ہوتا دکھائی دینے لگا تھا۔

بالآخر وہ دن بھی آیا ۔شبنم دلہن بنی رخصتی کے وقت بانوسے لپٹی ہوئی روروکر ہلکان ہوئے جا رہی تھی۔بانوسوچ میں پڑ گئی کہ اس کا یہ رونا رخصتی کا ہے،یا اظہارتشکر کا ؟ میں شبنم نے روتے ہوئے کہا:

’’بہن !تیرا مجھ پر یہ احسان والدین سے بڑھ کر ہے۔اسے میں کبھی نہیں بھلا سکتی۔ سب نے مل کر اسے ڈولی میں بٹھا دیا اور وہ پیا کے گھر سدھار گئی۔
                                                  محب اللہ قاسمی

Tuesday, 17 July 2018

Kahani ....HALALA


کہانی.....حلالہ

شاذیہ! تم جانتی ہو کہ ہماری شادی کو پانچ سال ہو گئے ہیں، مگر ہم ایک ساتھ سکون سے پانچ ماہ بھی نہیں رہ سکے ہیں۔ تم میری بات نہیں سنتی نہ مجھے تمہاری عادت اچھی لگتی ہے۔  ہم دونوں ایک دوسرے کے ساتھ بالکل خوش نہیں ہیں اور  ہماری کوئی اولاد بھی نہیں ہوسکی ہے۔ اب تم ہی بتاؤ، میں کیا کروں؟

ہاں، تم مجھے طلاق دے دو، مردوں کو تو طلاق دینے کا حق حاصل ہے، مجھے اپنے اس جہنم سے آزاد کردو...میں بھی تمہارے ساتھ رہ کر تنگ آ گئی ہوں، مجھے بھی تمہاری بہت سی عادتیں  اچھی نہیں لگتی ہیں، میں بھی تمہارے ساتھ نہیں رہنا چاہتی۔
 شاذیہ خلع کا تو تمہیں بھی حق حاصل ہے۔ تم  آئے دن ’ طلاق دے دو ‘، ’طلاق دے دو‘ چلاتی رہتی ہو۔پر میں ہمیشہ خود کوروکے رہتاتھا ،یہ سوچ کر کہ طلاق دینے میں جلد بازی نہیں کرنی چاہیے ۔ پر آج تو تم نے حد کردی ہے۔ اب ہمارا تمہارا نباہ نہیں ہوسکتا ۔ ہم لوگوں کے گھر والوں کی تمام کوششیں ناکام ہوچکی ہیں ۔میں نے تمہیں طلاق دی۔

شاذیہ کی عدت گزرتے ہی اس کےلیے ایک جگہ سے نکاح کا پیغام آیا، یہ رشتہ اس کے گھر والوں کومنظور ہوگیا۔ شادی کا دن مقرر ہوگیا۔ ساری تیاریاں ہوگئیں۔ مسجد میں لوگ نکاح کے لیے جمع ہوئے ہی تھے کہ اچانک پولیس کا ایک دستہ آیا اور نکاح  کی اس مجلس میں مداخلت کرتے ہوئے پولیس آفیسر نے کہا: مجھے پتا ہے کہ اس لڑکی کی شادی چند سال قبل فلاں گاؤں میں ہوئی تھی اور اس کی طلاق ہوگئی تھی۔ اب نئی شادی کراکے تم لوگ حلالہ کرارہے ہو۔ اس جرم میں لڑکے اور اس مجلس میں شامل تمام لوگوں کو گرفتار کیا جاتا ہے۔

پولیس کی بات سن کر لوگوں کے ہوش اڑ گئے۔ وہ  کہنے لگے: یہ کیا بات ہوئی۔ لڑکی کے باپ نے کہا : میں اپنی بیٹی کی شادی کررہا ہوں۔ کیا طلاق کے بعد اس کی شادی دوسری جگہ کرنے کا اختیار نہیں ہے۔ اس میں حلالہ کی کیا بات ہوئی؟ 

لیکن پولیس آفیسرنے سخت لہجے میں جواب دیا : میں کچھ نہیں جانتا۔ تم لوگ حلالہ کرارہے ہو۔ اس پر مجھے گرفتار کرنے کا آڈر ہے، میں گرفتاری کا وارنٹ لے کر آیا ہوں۔ جو کہنا  ہے عدالت میں جاکر کہنا۔ اس سے  پہلے کہ لڑکا کچھ کہتا اسے اور اس کے باپ کو گرفتار کرکے کر جیپ میں بٹھاتے  ہوئے پولیس کی گاڑی دھول مٹی اڑاتے ہوئے  چل پڑی
محب اللہ قاسمی

Wednesday, 18 October 2017

Beti - Short Story

 کہانی

بیٹی

بشری کو سرکاری نوکری مل گئی۔
جب شام کو گھر آئی ، ماں کے قریب جاکر بولی :
’’ماں ! منہ کھولو؟‘‘

 یہ کہتے ہوئے ڈبے سے مٹھائی نکالی اور جلدی سے ماں کے منہ میں ڈال دی۔
’’ماں آج تیری بیٹی کو نوکری مل گئی‘‘

’’سچ؟؟ میری بچی کو نوکری مل گئی ! اللہ کا شکر ہے! ‘‘یہ کہتے ہوئے ماں کی آنکھ سے خوشی کے آنسو نکل پڑے۔

’’ ماں اب تمہیں کام کرنے کی کوئی ضرورت نہیں!۔‘‘ بشری نے کہا۔

’’بیٹا ابھی تیری شادی باقی ہے۔تیرے ہاتھ پیلے کر نے کے لیے سامان تیار کرنا ہے۔ اس لیے میں جب تک کام کرسکتی ہوں کرنے دو۔ ‘‘ماں نے کہا۔

’’نہیں ماں اب تو کام پر نہیں جائے گی۔ بس!اب جو ہوگا میں دیکھوں گی۔‘‘ بشری نے ضد کی۔
’’ ٹھیک ہے۔اب میں کام نہیں کروں گی بس!‘‘

بشریٰ روزانہ صبح دفتر جاتی اور شام کو آتے ہی ماں کی خدمت میں لگ جاتی۔
ایک دن دفتر سے آنے کے بعد بشریٰ نے خلاف معمول ماں سے سنجیدہ لہجے میں پوچھا:

ماں میں نے جب بھی آپ سے ابا کے بارے میں جاننا چاہا تو یہ کہہ کر ٹال دیا کہ تو پڑھ لکھ بڑی ہو جائے گا اورتجھے نوکری مل جائے گی تو سب بتاؤں گی۔ ماںاب تو مجھے نوکری بھی مل گئی ہے ! بتاؤ ناابا کے بارے میں،انھوں نے تو ہم لوگوں کو کیوں اکیلا چھوڑ دیا؟

والد کا ذکرآتے ہی ماں کی پلکیں بھیگ گئیں اوربولیں:
       بیٹا وہ درد ناک رات یاد کرکے کلیجہ منہ کوآ جاتا ہے۔ جب تومیری گود میں تھی۔تیرے ابو نے تجھے مارڈالنے کی کوشش کی کہ تو لڑکی کیوں پیدا ہوئی؟ بچانے لگی تو مجھے گھر سے نکال دیا۔میں تجھے لے کر اپنے منہ بولے بھائی محمود کے پاس گئی تاکہ میری مدد ہوسکے، لیکن گاؤں کا معاملہ تھا انھوں نے تمھیں دودھ لاکر دیا اور مجھے مجھے کھانا کھلایا لیکن گھر میں ٹھہرانے کو راضی نہ ہوئے۔آخر کار میں تجھے گود میں لے کر تاریک راہوں کا سفر طے کرکے ہائی وے تک پہنچی۔خدا خدا کرکے رات گزاری صبح سویرے ایک بس شہر کو جارہی تھی اس پر سوار ہو کر نئے لوگوں کے درمیان پہنچ گئی۔ تمام چہرے انجان کوئی رفیق نہیں۔

کرکے ہائی وے تک پہنچی۔خدا خدا کرکے رات گزاری صبح سویرے ایک بس شہر کو جارہی تھی اس پر سوار ہو کر نئے لوگوں کے درمیان پہنچ گئی۔ تمام چہرے انجان کوئی رفیق نہیں۔
پٹنہ میرے لیے نیا شہر تھا۔ نئے لوگ اور الگ طرح کی طرز زندگی دیکھ کرمیں  پریشان تھی مگر ہمت اور حوصلے سے کام لیا۔ اللہ نے ایک نیک بندے کو میرے پاس بھیج دیا۔ اس نے میری حالت دیکھ کرپوچھا۔

میں نے اس کا جواب دیتے ہوئے کہا:
’’صاحب جی! میں غریب دکھیاری ہوں ، میرے شوہر نے مجھے اور بچے کو گھر سے باہر نکال دیا ہے۔ اب یہاں کام کی تلاش میںآئی ہوں،کوئی کام مل جائے تو میں اپنے بچے کی پرورش کرسکوں۔‘‘

میری بات کا جواب دیتے ہوئے انھوں نے کہا :
’’ٹھیک ہے !آپ میرے گھر چلیے میری بیوی بچے ہیں ، وہیں گھر یلوکام کاج میں ان کا ہاتھ بٹانا اور وہیں رہ لینا، جب کوئی اوراچھا کام مل جائے گا تو پھرآپ چاہیں تو رکیںگی ورنہ کہیں بھی جاسکتی ہیں۔ اس طرح سر راہ کہاں بھٹکتی پھریں گی۔ راستے پر ہر طرح کے لوگ ہوتے ہیں۔ ‘‘

ان کی باتوں سے انسانیت جھلک رہی تھی۔
پھر میں  تجھے اپنے کندھوں پر اٹھائے ان کے گھر چلی آئی۔ ان کے گھر کاکام کاج کرنے لگی۔ جب تو بڑی ہوئی تو اسکول میں داخلہ کرایا گیا اور میں گھریلو کام کاج کے بعد ایک سلائی سنٹر میں کام کرنے لگی۔ تیرے اسکول کی فیس اور اخراجات پورے ہونے لگے۔

پھرماں نے گہری سانس لی اورتھکی ہوئیآواز میں بولی:
بیٹا ! میں تجھ سے یہ سب واقعہ نہیں بتائی تاکہ تیرے دل میں اپنے والد کے خلاف نفرت نہ پیدا ہوجائے آج تو بڑی افسر بن گئی ہے۔‘‘

میری خواہش ہے کہ تورتن پور جا اور ان کو اپنے ساتھ لیآنا۔انھیں ان ضرورت ہوگی۔یہ کہتے ہوئے ماں نے اپنی بات مکمل کی۔

’’ماں ! ابا نے آپ کے ساتھ اچھا نہیں کیا۔ جب ہمیں ان کی ضرورت تب تو کبھی پوچھا نہیں ، کسی سے معلوم بھی نہیں کیا کہ ہم کہاں ہیں، اب ہمیں ان کی کوئی ضرورت نہیں!میں ان سے ملنے نہیں جاؤںگی۔انھیں یہاں لاؤں گی‘‘

’’نہیں رے! یہ سب تو تقدیر کا کھیل ہے۔ جو ہوا سو ہوا۔ تمھیں خدا کا واسطہ تم ان کو ضرور لاؤگی۔‘‘

ٹھیک ہے ماں!یہ آپ کا حکم ہے تو میں ایسا ہی کروںگی۔ اب رات کافی ہوگئی چلو ہم لوگ کھانا کھائیں پھر سونا بھی ہے۔یہ کہتے ہوئیوہ ٹیبل پر پلیٹ لگانے لگی۔سردی کا موسم تھا ماں کو کھانا کھلانے کے بعد ان کو  ان کے کمرے میں بستر پر لٹا دیا اور لحاف ڈال کر پاؤں دبانے لگی۔ماں گہری نیند سورہی تھی اور میں اپنی جنت کے قدموں میں پڑی اللہ کا شکر ادا کر رہی تھی کہ اس مالک نے ہماری آزمائش کے دن پورے کیے۔

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بچوں کی دنیا - اکتوبر2017





Muqabla Momin kis Shan

  مقابلہ مومن کی شان  اس وقت اہل ایمان کے سامنے کئی محاذ پر مقابلہ آ رائی ہے ضرورت اس بات کی ہے کہ امت کا ہر فرد بیدار ہو اور اپنے اپنے حصہ ...