कहानी: हमर्दद
✍️लेखक: मोहिबुल्लाह
’’दिलावर इस प्लाट पर काम जारी रखना। याद रहे किसी मज़दूर की मज़दूरी में कमी नहीं होनी चाहिए साथ ही अगर किसी की कोई मजबूरी हो तो ज़रूर ख़बर करना। मुझे ये बिलकुल पसंद नहीं कि गरीबी की दलदल से निकलने वाला शख़्स ग़रीबों के ख़ून पसीने से अपना महल तो खड़ा करले मगर बदले में इन मज़दूरों को बेबसी नाउम्मीदी के सिवा कुछ ना मिले। ''मैं पंद्रह दिन के लिए गांव जा रहा हूँ। माँ की तबीयत कुछ ठीक नहीं है । ये कहते हुए सूटकेस उठाकर नासिर अपने दफ़्तर से निकल ही रहाथा कि मंगलू चाचा ने कहा।
’’साहिब जी एक15 साल का जवान लड़का रेस्पशन पर खड़ा है। आपसे मिलना चाहता है। ''नासिर ने पूछा:
''इस से पूछा नहीं , किया बात है ?'
मंगलू चाचा ने जवाब दिया ’’वो पढ़ाई छोड़कर काम की तलाश में भटक रहा है। मगर बात करने से लगता है कि वो तेज़ और होनहार है।'
नासिर ने अफ़सोस का करते हुए कहा
’’उसे पढ़ाई नहीं छोड़नी चाहिए थी! ख़ैर उसे बुलाओ। ये कह कर नासिर वापिस अपने केबिन में चला आया और अपनी कुर्सी पर बैठ गया।'
मंगलू चाचा लड़के को लेकर हाज़िर हुआ।
लड़के ने सलाम दुआ के बाद नासिर के सामने अपनी बात रखी।
’’में एक ग़रीब हूँ, मेरे कई भाई बहन हैं और पिता जी लाचार हैं। इसलिए मैं नौकरी करना चाहता हूँ ।'
नासिर ने पूछा:
’’ लेकिन मुझे मालूम हुआ है कि तुम पढ़ाई कर रहे थे और पढने में तेज भी हो। फिर पढ़ाई क्यों नहीं करते ? '
लड़के ने बड़ी मासूमियत के साथ जवाब दिया:
’’अब आप ही बताईए अब ऐसी हालत में मेरा पढ़ना ज़रूरी है या घर वालों के जीने के लिए बुनियादी ज़रूरतें पूरी करना?
में एक जवान हूँ। काम करसकता हूँ तो फिर अपने घर वालों के लिए नौकरी क्यों ना करूँ।
दो पैसे मिलेंगे तो उनको कुछ ख़लाओंगा।
नहीं तो र्न उनके भीक मांगने की नौबत आएगी,
साहब जी मैं ख़ुद भीक मांग सकता हूँ मगर में अपने माता पिता को भीक मांगते नहीं देख सकता।'
इस की बातों ने नासिर को झिझोड़ कर रख दिया और वो अपनी पुरानी की यादों में खो गया।
नासिर पढ़ने में बहुत तेज़, संस्कारी और हंसमुख लड़का था। इस के पिता जी उसे पढ़ाना चाहते थे इसलिए उसे पटना के अच्छे बोर्डिंग स्कूल में भेजा गया था,जहां वो अब दसवीं क्लास तक पहुंच चुका था। मगर एक दिन उस के घर से एक पत्र आया जो उस के लिए सर पर आसमान से बिजली गिरने के बराबर था। ख़ैर ख़ैरीयत के बाद पत्र में लिखा था।
’’तुम्हारा बाप अब बीमारी के कारन बहुत माज़ूर हो गया है , थोड़ा बहुत वो कमा कर भेजता है जो घर के इतने खर्च के सामने ऊंट के मुँह में ज़ीरा के मानिंद है। अब हम लोग तुम्हारे पढाई-लिखाई के अख़राजात क्या पूरे करें यहां घर पर हम लोगों के लिए दो वक़्त की रोटी भी मिलना मुश्किल हो रहा है। दिन ब दिन क़र्ज़ पे क़र्ज़ का बोझ और इस का ब्याज अलग हम लोग बहुत मुश्किल में हैं। तुम्हारी प्यारी दादी'
नासिर का दिल पूरी तरह टूट चुका था वो और पढ़ना चाहता था मगर जब भी वो लालटैन के सामने अपनी किताब खोलता उसे ख़त के वो सारे जुमले कांटे की तरह उस के जिस्म में चुभते हुए महसू करता । वो जलते हुए लालटैन को अपना दिल तसव्वुर करने लगा जिसमें उस का ख़ून मिट्टी तेल के मानिंद जल रहा था।
धीरे धीरे पढ़ाई से इस का दिल हटने लगा और वो दौर स्कालरशिप का नहीं था या उसे दुसरे किसी की जानिब से आर्थिक सहायता का सहारा मयस्सर नहीं था , फिर वो ये भी नहीं चाहता था कि अब इन किताबों के पन्नों पर लिखे इन अक्षरों को पढ़े और इस के घर वाले परेशान हो कर अपनी ज़िंदगी तबाह करें।
फिर वो कमाई के तरीक़ों के बारे में सोचने लगा, कभी सोचता किसी दूकान में नौकरी करलूं मगर वहां तनख़्वाह महीने पर मिलेगी, कभी सोचता कि गाड़ी का कंडक्टर बन जाऊं रोजाना आमदनी होगी। मालिक से बोल कर रोज़ाना पैसे ले लिया करूँगा। फिर सोचता कि नहीं इस में भी चाहे मेहनत कितनी भी कर लूं फिक्स आमदनी होगी और दुसरे के अधीन रहना होगा सो अलग। इसलिए सोचा क्यों ना ड्राईवर बन जाऊं और किराए से आटो लेकर गाड़ी चलाऊं, किराया देकर जो बचा सो अपना और ख़ूब मेहनत करूंगा और अपने माता-पिता और घर वालों का फ़ौरी सहारा बन जाऊँगा। इस तरह उसने पटना में ही स्कूल छोड़कर ड्राइविंग करना सीख लिया इस तरह वो एक अच्छा ड्राईवर बन गया और कमाने लगा।
कुछ दिन बाद जब घर आया और घर वालों को मालूम हुआ तो उस के पिता जी को बड़ी तकलीफ़ हुई उसने कहा:
’’बेटे मैं मानता हूँ कि मैं बहुत ग़रीब हो गया हूँ और अब मुझ से इतना काम नहीं हो पाता मगर ! में अभी मरा नहीं हूँ। फ़िर ये ये क्या ... तुमने पढ़ाई ही छोड़ दी। सब्र करते ये कठिन दिन थे गुज़र जाते'
नासिर ने कहा:
हाँ पिता जी खुदा आप को सलामत रखे। मैं जानता हूँ कि इस से आपको तकलीफ़ पहुंची होगी। मगर में क्या करता, में आप लोगों की परेशानी देख नहीं सकता।
इशवर ने चाहा तो धीरे धीरे सारे क़र्ज़ अदा हो जाऐंगे और आपको भी काम करने की ज़रूरत ना होगी।
नासिर गाड़ी चलाता रहा और एक ज़िम्मेदार की हैसियत से अपने घर परिवार की ज़रूरीयात पूरी करने में मसरूफ़ हो गया। अब वो धीरे धरे गाड़ी चलाना छोड़ कर मकान बनाने का कंट्रेट लेना शुरू कर दिया इस तरह वो बहुत बड़ा कांट्रेक्टर और बिल्डर हो गया। ''हौसला बिल्डर ग्रुपस' के नाम से उसने अपनी कंपनी खोली और ना सिर्फ अपने लिए बल्कि वो लोगों का भी हमदर्द बन कर सामने आया।
आज वो एक बहुत बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी का मालिक बन चुका था। इस दौरान उस के पिता जी का देहांत हो गया और वह अपनी माँ बहन और भाईयों की देख-रेख और उनकी पूरी ज़िम्मेदारीयों को बहुत अच्छी तरह अंजाम देने लगा।
सर ....सर ! ..सर आप कहाँ खो गए? इस ग़रीब लड़के ने टेबल पर हाथ रखते हुए कहा:
हाँ..हाँ तो तुम कह रहे थे कि अपनी गरीबी की वजह से पढ़ना नहीं चाहते। ख़ैर परेशान ना हो । हमारे यहाँ तो कोई नौकरी नहीं है अलबत्ता तुम्हारी पढाई के सारे खर्चे और घरवालों के लिए भी उनके जरुरी अख़राजात अब मैं बर्दाश्त करूँगा।
ये सुनकर उस की आँखें डबडबाने लगीं । उसने ताज्जुब भरे अंदाज़ में कहा:
हाँ सर...! क्या ऐसा हो सकता है? आप मेरे और घर वालों के अख़राजात बर्दाश्त करेंगे।
नासिर ने कहा हाँ मगर उस के बदले मुझे कुछ चाहिए।
लड़का चौंका और में पूछा:
क्या-क्या सर? किया चाहिए? मैं तो कुछ दे नहीं सकता !
फिर नासिर ने कहा तुम्हें इस के बदले अपनी मेहनत से अपनी शिक्षा पूरी करनी होगी और अपनी पूरी लगन के साथ एक अच्छा ऑफीसर बन कर दिखाना होगा। बोलो राज़ी हो?
उसने कहा बिलकुल सर आप इन्फ़सान नहीं फ़रिश्रता हैं, हमारे लिए मसीहा के मानिंद हैं। मैं आपकी उम्केमीद के मुताबिक़ अपनी शिक्षा पूरी करूँगा।
नासिर ने अपने मैनेजर को बुला कर इस बच्सेचे से पूरी जानकारी लेकर उस के घर हर माह रक़म भेजने और इस के किसी अच्छे स्कूल में दाख़िला की कार्रवाई पूरी करने का आदेश दिया।
तभी मंगलू चाचा ने आवाज़ दी:
हुज़ूर गाड़ी आ गई और नासिर का सामान उठा कर गाड़ी में डालने के लिए चल पड़ा। नासिर ने इस लड़के से कहा ठीक है। अल्लाह हाफ़िज़ मैं पंद्रह दिन के लिए घर जा रहा हूँ आने के बाद तुमसे तुम्हारे स्कूल में मिलूँगा।