ख़ुदी पे जिसकी नज़र नहीं है
बयाँ में इस के असर नहीं है
उन्हें मुहब्बत है मुझसे लेकिन
मुझी को इस की ख़बर नहीं है
ये ज़िंदगी इक सफ़र है लेकिन
दरुस्त सिम्त-ए-सफ़र नहीं है
खड़े हैं सफ़ में वो ऐसे देखो
कोई भी ज़ेर-ओ-ज़बर नहीं है
ग़रूर में चूर रहने वाला
पड़ा है कैसे ख़बर नहीं है
डराएगा तुझको ये ज़माना
बहादुरी तुझ में गर नहीं है
जवान जिसका भी अज़म है वो
किसी के दस्त-ए-निगर नहीं है
बढ़ो सँभालो केयादतों को
कि उनमें ख़ून-ए-जिगर नहीं है
रफ़ीक़ साथी बनालो कोई
सफ़र में गिर हमसफ़र नहीं है
मोहिबुल्लाह


