Thursday, 24 July 2025

Kahani Fareeb (Hindi)

 कहानी ..... फ़रेब

मोहिबुल्लाह 


क्यों जी आपकी तबीयत तो ठीक है? क्या सोच रहे हैं। मैं पोते के पास जार ही ज़रा देखूं क्यों रो रहा है। ठीक है सद्दो (सादिया) जाओ मगर जल्दी आना!


फिर उस ने टेबल पर रखे माचिस से सिगरेट जलाया और कश लेते हुए यादों के समुंद्र में डूब हो गया

25 साल गुज़र गए जब सद्दो दुल्हन बन कर घर आई थी। आज भी में इस वाक़िया को नहीं भूल पाया। ससुराल वाले हमेशा मेरे गुस्से का शिकार रहते थे और मैं मन-मौजी, जो जी में आया करता गया।

लेकिन वो हसीन ख़ूबसूरत परी जिसका चेहरा हर-दम मेरी निगाहों के सामने घूमता रहता था। गुज़रते समय के साथ कहीं खो गया !


मैं बहुत ख़ुश था, ख़ुशी की बात ही थी। मेरी शादी जो हो रही थी। लड़की गावं से कुछ फ़ासले पर दूसरे गावं  की थी जिसे में अपने पिता जी और कुछ दोस्तों के साथ जा कर देखा भी था। लंबा क़द, सुराही दार गर्दन, आँखें बड़ी बड़ी, चेहरा किताबी, रंग बिलकुल साफ़ कुल मिलाकर वो बहुत ख़ूबसूरत थी। ख़ानदान और घर घराना भी अच्छा था।


घर में सब लोग ख़ुश थे पिता जी ने कुछ लोगों से बतौर मेहमान जिनमें कुछ मेरे दोस्त भी थे, शादी की इस तक़रीब में शिरकत के लिए दावत दी थी। पिता जी मेहमानों के स्वागत में खड़े थे और घरवालों से जल्दी तैयार होने के लिए कह रहे थे।


मेरे सामने हर वक़त उसी का चेहरा घूमता रहता था, फ़ोन का ज़माना तो था नहीं कि फ़ोन करता जैसा कि इस दौर में हो रहा है

बारात लड़की वालों के दरवाज़े पर पहुंच गई। हल्का नाश्ता के बाद निकाह की कार्रवाई शुरू हुई। क़ाज़ी साहिब के सामने मैं ख़ामोश बुत की तरह बैठा रहा वो क्या कह रहे हैं? क्या-क्या पढ़ा गया। मुझे कुछ पता ही नहीं चला अचानक जब क़ाज़ी साहिब ने पूछा कि आपने क़बूल किया।


ख़यालों का सिलसिला टूट गया और मैं एकाएक बोल गया ' हाँ हाँ मैंने क़बूल किया।'

लोगों को थोड़ी हैरानी हुई कि सब शर्म से धीमी आवाज़ में बोलते हैं ये तो अजीब लड़का है। मगर कोई क्या कह सकता था बात सही थी, बोलना तो था ही ज़रा ज़ोर से बोल गया।


निकाह के बाद मुझे ज़नान ख़ाना में बुलाया गया, मैंने सोचा मुम्किन है कहीं घर में मुझे उसे देखने का मौक़ा मिले कि दुल्हन के जोड़े में वो कैसी दुखती है मगर वही पुरानी बात मुझे वहां देखने का कोई मौक़ा नहीं दिया गया। क्यों कि ऐसी कोई रस्म भी नहीं थी। ख़ैर दिल को मना लिया और उसे बहलाते हुए कुछ तसल्ली दी अरे इतना बे तावला क्यों होता है कि शाम में तो वो तेरे पास ही होगी। फिर जी भर के देखना। दिल बेचारा मान गया। फिर थोड़ी बहुत मिठाई वग़ैरा खाई फिर दोस्तों के साथ हम घर से बाहर चले आए।

विदाई के बाद हम लोग अपने घर आगए।


उधर मेरा घर सजाया जा चुका था मिट्टी के कच्चे मकान में सब कुछ सलीक़े से रखा हुआ था। एक पलंग पर दुल्हन की सेज सजाई गई, फूल गुल से सारा घर ख़ूबसूरत लग रहा था। अंधेरा सा होने लगा था। मगर दिल में ख़ुशी का दिया रोशन था।


औरतों ने दुल्हन का भव्य स्वागत किया और उसे घर के अंदर आँगन में ले गईं। बहुत सी महिलायें वहां जमा थीं, मुंह दिखाई की रस्म के बाद जाने लगीं। उस समय मेरा अंदर जाना मन था। तक़रीबन दस बजे में दुल्हन के कमरे में दाख़िल हुआ।


और दरवाज़ा बंद किया ही था कि खटखटाहट की आवाज़ आई मैंने पूछा कौन?

उधर से मेरी भाभी बोली! देवर जी में हूँ दरवाज़ा खोलो ये दूध का गिलास यहीं रह गया। ख़ैर मैंने दरवाज़ा खोला और इस से शरारती अंदाज़ में कहा आप भी ना। ये सब पहले से रख देतीं। अरे देवर जी इतनी बेचैनी किया है, बिटिया अब यहीं रहेंगी, ठीक अब आप जाएंगी भी या यूँही वक़्त बर्बाद करेंगी। ये कहते हुए मैंने दरवाज़ा फिर से बंद कर दिया और पलंग पर उस के क़रीब बैठ गया। मुझे कुछ समझ नहीं आरहा था। क्या बोलूँ ? क्या कहूं? ख़ैर जो कुछ मेरे दिल में आया उस की तारीफ़ में दिया।


मगर उस की तरफ़ से कोई आवाज़ ना आई। मैंने कहा देखो अब जल्दी से मुझे अपना ख़ूबसूरत और चाँद-सा चेहरा दिखा दो में अब और सब्र नहीं कर सकता? फिर भी कोई आवाज़ ना आई तो फिर मैंने कहा ’’ठीक है अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा और मैंने उस के चेहरे से घूँघट उठा दिया


नज़र पड़ते ही मेरे पांव से ज़मीन खिसक गई, में अपने होश गंवा बैठा। समझ में नहीं आ रहा था कि अब में करूँ।


क्या बात है? आप कुछ परेशान से हैं?' उसने बड़ी मासूमियत से पूछा:

ऐसी कोई बात नहीं है, तुम फ़िक्र ना करो।''मैंने उस का जवाब दिया

’’बात तो कुछ ज़रूर है? आप छिपा रहे हैं?'

मैंने उस का जवाब देते हुए कहा:''कोई बात नहीं सिर्फ सिरदर्द है।'

’’लाइए में दबा देती हूँ।''उसने मुहब्बत भरे लहजे में कहा

’’ नहीं नहीं मुझे ज़्यादा दर्द हो रहा है दबाने से ठीक नहीं होगा दवा लेनी ही होगी ''और ये कह कर में घर के बाहर चला आया


बाहर देखा सब लोग गहिरी नींद में सोए हुए हैं। छुप कर में नदी के किनारे जा बैठा।''ये कैसे हुआ&? ये तो सरासर फ़रेब है। '

''इतनी रात गए तो यहां क्या कर रहा है? ''अचानक मेरे दोस्त ने मुझे टोका

''यार पिता जी के साथ तु भी तो था? कैसी थी? फिर ये क्या:इतना बड़ा धोका? लड़की दिखाई गई और शादी किसी दूसरी के साथ। ये शादी नहीं मेरी बर्बादी है। '


शाहिद अरे यार ज़रा सब्र से काम ले।

मैंने कहा: नहीं यार में कल ही पिता जी से बात करूँगा, और लड़की वालों को बुला कर उस की लड़की वापिस करूंगा। इन लोगों ने मेरे साथ निहायत भद्दा मज़ाक़ किया है।

तभी मेरा दूसरा दोस्त ख़ालिद भी वहां आ गया और बोला

ठीक है , ठीक है! लड़की वो नहीं है दूसरी ही सही अच्छी भली तो है ना। और हाँ तुमने उसे कुछ कहा तो नहीं?

नहीं, मैंने उसे कुछ नहीं बताया। सिरदर्द का बहाना बनाकर चला आया हूँ।'


ख़ालिद ने कहा :''हाँ ये तो ने अच्छा किया? इस से बताना भी मत। अब शादी हो गई तो हो गई। भले ही उस के माँ बाप ने ग़लती की हो पर इस में इस लड़की का क्या क़सूर तुम उसे वापिस कर दोगे। इस से इस की बदनामी नहीं होगी। फिर कौन इस से शादी करेगा। फिर वो ज़िंदगी-भर ऐसे ही रहेगी। अपने लिए नहीं उस के लिए सोच। जो अपने घर, परिवार से विदा हो कर तेरे घर अपनी ज़िंदगी की ख़ुशीयां बटोरने आई है।

''वो ख़ुशीयां बटोरने आई है मेरी ख़ुशीयों का किया? ''

ख़ालिद मेरी बात सुनकर ख़ामोश हो गया।

मैंने भी सोचा उस की बात तो ठीक है, मगर में कैसे भूल जाता, वो लड़की, उस की ख़ूबसूरती, उस की बड़ी बड़ी चमकती आँखें मेरी निगाहों के सामने घूमने लगती थी।


मेरे लाख इनकार और विरोध के बाद जब कुछ ना बन पड़ा और दोस्तों की बातें सुनकर मायूस एक लुटे हुए मुसाफ़िर की तरह अपने घर लौट आया। देखा दुल्हन सोई हुई हैं। 3 बज रहे थे। में भी अपना तकिया लिए हुए अलग एक तरफ़ सो गया।


कुछ साल बाद जब क़रीब के गांव से ख़बर आई कि एक औरत ने अपने पति का क़तल कर दिया और अपने आशिक़ के साथ भाग गई है। मालूम करने पर पता चला कि वो वही लड़की थी जिससे उस की शादी होनी थी जिसकी ख़ूबसूरती पर वो दीवाना था। इस वक़्त उस के सिर पर बिजली सी कौंद गई अरे ये किया हुआ, तब उसे एहसास हुआ अच्छी सूरत हो ना हो अच्छी सीरत ज़रूरी है। इस धोका पर ख़ुदा का शुक्र अदा किया।

उठो जी! ये किया? सामने बिस्तर लगा हुआ है और आप सिगरेट लिए हुए कुर्सी पर सो रहे हैं

मैं हड़बड़ा कर नींद ही में बोला: सद्दो तुम बहुत अच्छी हो। 


हाँ हाँ अब ज़्यादा तारीफ़ की ज़रूरत नहीं है। आप ये बात हजारों बार बोल चुके हैं। ''अब चलीए बिस्तर पर लेट जाईए में आपके पांव दबा देती हूँ। !

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Per Lagayen ham

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